नई दिल्ली: भारत और पाकिस्तान सोमवार को करीब 18 साल बाद एक बार फिर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय आईसीजे में आमने-सामने होंगे। भारत पूरी दुनिया के सामने कुलभूषण जाधव की बेगुनाही का सुबूत रखेगा। यह साबित करेगा कि जाधव को पाकिस्तान ने जासूसी के झूठे मामले में कैसे फंसाया।
पाकिस्तानी सैन्य अदालत ने पिछले महीने जाधव को मौत की सजा सुनाई है। इससे पहले 1999 में पाकिस्तानी नौसैनिक विमान को मार गिराने के मामले में दोनों देश इस न्यायालय में आमने-सामने आए थे। संयुक्त राष्ट्र के प्रमुख न्यायिक निकाय आईसीजे सोमवार को नीदरलैंड के हेग स्थित पीस पैलेस के ग्रेट हॉल ऑफ जस्टिस में इस मामले की सार्वजनिक सुनवाई करेगा। भारत ने 8मई को इस अंतरराष्ट्रीय अदालत में याचिका दायर की थी।
भारत का आरोप है कि पाकिस्तान ने विएना समझौते का उल्लंघन कर उसके पूर्व नौसैनिक अधिकारी से राजनयिक संपर्क के आवेदन को लगातार 16 बार खारिज कर दिया। इसके अलावा पाकिस्तान ने जाधव के परिवार के वीजा आवेदन का भी कोई जवाब नहीं दिया। आइसीजे ने मामले के महत्व को देखते हुए इसको संयुक्त राष्ट्र के वेब टीवी पर सीधे प्रसारित करने का फैसला किया है। यह भारतीय समयानुसार दिन में 1.30 बजे से देखा जा सकेगा।
इसके अलावा इसका सीधा प्रसारण आइसीजे की वेबसाइट पर भी होगा। इससे पहले पाकिस्तानी नौसैनिक विमान को मार गिराने के मामले में दोनों देश अंतराष्ट्रीय न्यायालय में आए थे। भारतीय वायु सेना ने 10 अगस्त 1999 को कच्छ क्षेत्र में पाकिस्तानी नौसेना के विमान अटलांटिक को मार गिराया था। विमान में सवार सभी 16 नौसैनिक कर्मी मारे गए थे। पाकिस्तान का दावा था कि विमान को उसकी ही वायुसीमा में मार गिराया गया लिहाजा उसने भारत से छह करोड़ अमेरिकी डॉलर के हर्जाने की मांग की थी। 21 जून 2000 को अदालत की 16 सदस्यीय पीठ ने पाकिस्तान के दावे को 14-2 के बहुमत से खारिज कर दिया था।
यह फैसला अंतिम था और इसके खिलाफ कोई अपील संभव नहीं थी। अदालत में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व तत्कालीन अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी ने किया था। सुनवाई के दौरान आइसीजे ने भारतीय दलीलों से सहमत हुए पाया कि उसे पाकिस्तान के 21 सितंबर 1999 को दायर आवेदन पर विचार करने का अधिकार ही नहीं है। दरअसल सुनवाई के प्रारंभ में ही दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हो गए थे कि पहले न्यायाधिकार के सवाल पर फैसला हो उसके बाद ही मामले के गुण-दोषों पर सुनवाई की जाए।
भारत की दलील थी कि यह मामला आईसीजे के न्यायाधिकार से बाहर है। इस संदर्भ में उसने 1974 की उस छूट का हवाला दिया जिसमें भारत और अन्य राष्ट्रमंडल देशों के बीच विवाद और बहुराष्ट्रीय समझौतों के तहत आने वाले विवादों को आइसीजे के दायरे से बाहर रखा गया था। इसके अलावा सोराबजी का कहना था कि घटना के लिए पाकिस्तान ही पूरी तरह जिम्मेदार था लिहाजा उसे अपनी करनी का परिणाम भुगतना ही चाहिए। हालांकि पाकिस्तान ने भारत की दलीलों का विरोध किया थाए लेकिन अदालत ने उसे नहीं माना।