केजरीवाल के यह वक्त आत्म अवलोकन का है। हार स्वीकार करने के साथ उन्हें अपनी पार्टी में दिख रही दरारों को पाटना होगा, क्योंकि इसके बढ़ने की आशंका अब और बढ़ेगी। ईवीएम को दोष देने और एक के बाद एक चुनावी हार आप के शेष जनाधार को खत्म कर देगी। पार्टी के नेता बागी हो सकते हैं और हो सकता है कि पार्टी ही टूट जाए।
2. सड़कों पर उतरिए
केजरीवाल ने इस विकल्प की ओर खुद ही इशारा किया है। हाल ही में उन्होंने कहा था कि अगर आम आदमी पार्टी चुनाव हारी, तो वापस धरने की राजनीति शुरू करेंगे। हो सकता है कि वह ईवीएम विवाद पर प्रदर्शन शुरू करें, लेकिन इसकी संभावना कम है कि उन्हें उस तरह पब्लिक सपोर्ट मिले, जैसी अन्ना हजारे के साथ लोकपाल आंदोलन के दौरान मिली थी। यही नहीं हो सकता है उन्हें अपने ही साथियों का सपोर्ट न मिले।
3. महागठबंधन से जुड़ें
बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनाने की सोच रही विपक्षी पार्टियों के साथ केजरीवाल जा सकते हैं। ऐसे में केजरीवाल कुछ समय के लिए राजनीति के केंद्र में रहेंगे। हालांकि महागठबंधन में शामिल होने से आम आदमी पार्टी में सुधार की संभावना बहुत कम है। कांग्रेस आम आदमी पार्टी को गोवा और पंजाब जैसे राज्यों में प्रतिद्वंदी के तौर पर देखती है। कई अन्य पार्टियों का भी केजरीवाल के प्रति सकारात्मक रुझान नहीं है। महागठबंधन में शामिल होना केजरीवाल के उस वादे के साथ धोखा होगा, जिसमें उन्होंने कहा था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ेंगे। महागठबंधन में शामिल होना उनको आहिस्ता-आहिस्ता खत्म भी कर सकता है।
4. पुराने साथियों को जोड़े और सुधार करें
केजरीवाल के लिए यह सबसे बढ़िया होगा। केजरीवाल और उनके करीबी साथियों ने पूरी पार्टी को अपने कब्जे में रखा है और असफलताओं का कारण इसी में छिपा है। केजरीवाल को मेंटर की भूमिका में आ जाना चाहिए और नए चेहरों को पार्टी चलाने देनी चाहिए। इसके साथ ही वे अपने पुराने दोस्तों को भी पार्टी से जोड़ सकते हैं, जो लोकपाल आंदोलन के दौरान उनके साथ थे और बाद में उन्हें किनारे कर दिया गया।आम आदमी पार्टी के लिए यह मौका है कि वह खुद में सुधार करें, संस्थागत समस्याओं को दूर करें और पुराने साथियों को वापस लाएं। आप के लिए मेंटर के रूप में केजरीवाल का उभार भविष्य में वर्तमान की असफलताओं पर सफलता की चादर चढ़ा देगा।