अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व स्कॉलर और हिजबुल मुजाहिदीन के संदिग्ध सदस्य गुलजार अहमद वानी को बाराबंकी अदालत ने वर्ष 2000 में साबरमती एक्सप्रेस में हुए विस्फोट का षड़यंत्र रचने के मामले में आज दोषमुक्त करार दे दिया. आरोपी के वकील के मुताबिक अदालत ने सबूतों के अभाव के कारण वानी और सह आरोपी मोबिन की रिहाई का आदेश दिया है.
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अहमद के वकील एम एस खान ने बताया कि अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एम ए खान ने दोनों आरोपियों को सभी आरोपों से मुक्त कर दिया क्योंकि अभियोजन उनके खिलाफ लगाए गए किसी भी आरोप को साबित नहीं कर सका. वानी को दिल्ली पुलिस ने वर्ष 2001 में कथित रूप से विस्फोटक और आपत्तिजनक सामान के साथ गिरफ्तार किया था. वह श्रीनगर के पीपरकारी इलाके का निवासी हैं और इस समय लखनऊ की एक जेल में बंद है. उन्हें जिन धमाकों का आरोप है वह स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर उस समय किया गया था जब ट्रेन मुजफ्फरनगर से अहमदाबाद जा रही थी. इस विस्फोट में नौ लोगों की मौत हो गई थी.
श्रीनगर के निवासी अहमद 16 साल से ज्यादा समय तक सलाखों के पीछे रहे हैं. साबरमती एक्सप्रेस में 14 अगस्त 2000 को बम विस्फोट होने के बाद दिल्ली पुलिस ने जुलाई 2001 में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्हें गिरफ्तार किया था. उन्हें दिल्ली के अलग-अलग इलाकों और यूपी के आगरा, कानपुर समेत विभिन्न शहरों में हुए 11 मामलों में आरोपी बनाया गया था. बाकी सभी मामलों में कोर्ट पहले ही उन्हें बरी कर चुका है. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ ने 26 अगस्त को वानी को जमानत देने से इनकारकरते हुए कहा था, ऐसे लोगों की रिहाई से समाज के हितों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा.
वानी ने कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल निचली अदालत को निर्देश दिया था कि वह छह महीने में मामले के गवाहों से तेजी से जिरह करे. अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया था कि आरोपी ने 14 अगस्त 2000 को साबरमती एक्सप्रेस में धमाके को अंजाम देने के लिए मई 2000 में एएमयू के हबीब हॉल में साजिश रची थी. उनके खिलाफ जुलाई 2001 में आरोप तय किए गए थे.
आपको बता दें कि गुलजार अहमद श्रीनगर के एक पढ़े-लिखे परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता सरकारी अफसर रह चुके हैं. जिस वक्त गुलजार को गिरफ्तार किया गया, तब उनकी उम्र 28 साल थी और वो एएमयू से अरबी में पीएचडी कर रहे थे.
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