भले ही कांग्रेस लगातार अपनी पार्टी में सुधार का दावा कर भाजपा को चुनौती देने की बात करे , लेकिन कांग्रेस के लिए राह ये इतनी आसान भी नहीं है, क्योंकि विपक्ष में वो एकता नहीं दिख रही जिसकी बात की जा रही थी.ऐसे में 2014 में केंद्र में भाजपा को बैठने से रोकना इतना आसान नहीं होगा.
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उल्लेखनीय है कि भाजपा आरम्भ से ही हिंदुत्व, सांस्कृतिक और आर्थिक राष्ट्रवाद के मुद्दों को उठाती रही है , तो कांग्रेस का पूरा ध्यान गांधी के नाम और विरासत पर ही केंद्रित रहता है. वहीँ विपक्ष की अन्य पार्टियों बीएसपी, एनसीपी, समाजवादी पार्टी आदि का भी सन्देश लगभग एक ही रहता है. जो कांग्रेस के लिए चिंताजनक है.यहां ध्यान देने वाली बात यह है, कि इन सबका मतदाता भी एक ही रहता है.ऐसी दशा में मतदाता भ्रमित हो जाता है. विपक्षी पार्टियों द्वारा लोगों को लुभाने के लिए आकर्षक योजनाओं की घोषणा का जाल भी फैलाया जाता है.
बता दें कि कांग्रेस अभी भी इतनी मजबूत नहीं लग रही, कि वो भाजपा के साथ-साथ इन विपक्षी पार्टियों से भी लड़ सके. आखिर सब पार्टियों का मकसद जीत हासिल करना ही होता है .हालाँकि राहुल गांधी को इस साल के अंत तक कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा है.लेकिन उनकी वर्तमान छवि ऐसी नहीं है, कि सत्ता दिला सके. पार्टी के सिपहसालार बीजेपी को कड़ी चुनौती देने की भी बात कह रहे हैं. लेकिन अक्सर इन दावों पर भी कई बार सवाल खड़े होते रहे हैं.
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