28 फरवरी 17….आज सुबह कोलकाता से श्रीगुरुजी का फ़ोन आया,” गुरु महाराज जी(श्री राम कृष्ण परमहंस) का आज जन्मदिन है ,उनका तिलक वंदन ज़रुर कर देना।”
” आप चिंता न करें, मैं हूँ ना…” ,मैंने कहा।
” तभी तो आश्वस्त हूँ….गुरु महाराज जी को स्वामी विवेकानंद में एक अति योग्य व्यक्ति के लक्षण दिखे,तभी तो वे उनके पीछे पड़े रहे, उन्हें अपने हाथ से खिलाते, पिलाते…कि किसी तरह यह मेरा शिष्य बन जाए… और शिष्य बनकर जब स्वामी जी ने कहा, कि उन्हें मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा है तो उन्हें खूब फटकारा भी…कि मोक्ष पाना तो सरल है, साधना की, ज्ञान की शक्ति प्राप्त कर देश का काम करो ।” ये एक सांस में मुझसे कहते चले गए।
” हाँ…नहीं तो वे कह सकते थे, ध्यान लगा लो, भजन गा लो, प्रभु को पा लो और प्रसन्न रहो…,पर समय की मांग को समझते हुए उन्होंने प्रभु- काम को अधिक बल दिया…..वैसे, चाय तो कभी-कभी आश्रम के बच्चों को आप भी अपने हाथ से बना कर पिलाते हैं, तो इसका मतलब यह तो नहीं कि किसी की तलाश आपको भी है ?” मैंने इधर से कहा।
वो हंसे और बोले,” देश- धर्म के हालात बदलने के लिए मुझे लोग चाहिए, शिष्य नहीं…”
” शिष्य क्यों नहीं, कितने ही लोग हैं,जो आपके शिष्य बनना चाहते हैं….(उधर से जब कोई आवाज़ नहीं आयी, तो मैं बोली…) अच्छा ठीक है, कल तो आप आ ही जायेंगे, तब बात करते हैं….”
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