30 मार्च 2017…. कुछ समय पूर्व श्रीगुरुजी स्वामी विवेकानंद जी के बारे में बता रहे थे, वे एक गीत गुनगुनाने लगे , “घर चलो मन आज ही अपने…” गीत पूर्ण होने पर मैंने पूछा ‛घर चलो मन’ अर्थात मृत्यु …इस गीत में मृत्यु के प्रति इतना उत्साह क्यों ?

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उत्तर आया, “ मृत्यु एक उत्सव है, उनके लिये जिन्होंने अपना जीवन उद्देश्य पूरा कर लिया और जिन्हें यह अहसास हो गया कि उनकी आत्मा परमात्मा से छिटका हुआ अंश है, ….कार्य पूर्ण हुआ, अब घर वापिस जाने का समय आ गया है। हाँ , यदि मोक्ष मिल गया तो फिर तो उत्सव ही उत्सव क्योंकि अब आत्मा कुछ समय के लिए परमात्मा के साथ ही रहेगी ….. जिनका उददेश्य पूर्ण नहीं हुआ या कर्तव्य अधूरे रह गए या जिनको इस योनि से मुक्ति तो मिल गयी पर दूसरे जन्म के लिये (जो उनके कर्मों के आधार पर निशित होगा)…., उनके लिए मृत्यु सिर्फ़ एक पड़ाव है … .हाँ , जो पीछे रह जाते हैं, परिवार, दोस्त, रिश्तेदार, ….उनके लिए तो उनके अपने की मृत्यु पीड़ा ही है……”
“जब मृत्यु उत्सव है तो बाकी लोग समझते क्यों नहीं, विलाप क्यों करते है?” मैंने फिर से पूछा …
“ क्योंकि इस धरती पर शरीर धारण करने वाली हर आत्मा माया के प्रभाव में आ जाती हैं। माया मतलब मोह… मोह के वशीभूत होकर लोग शरीर से प्रेम करते हैं, इसलिए किसी अपने का शरीर शांत होने पर विलाप करते हैं।….वहीं कुछ ऐसे लोग भी होते हैं जो इस मोह के प्रभाव में नहीं आते , निर्लिप्तता के भाव के साथ कार्य करते हैं , उनके लिए मृत्यु सिर्फ एक उत्सव है ।” श्रीगुरुजी के इस उत्तर से मैं पूर्णतः संतुष्ट थी।
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