31 हजार करोड़ रुपये के अनाज घोटाले पर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने यूटर्न ले लिया और एक बड़ा फैसला सुना दिया। मामले में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने अब इस मामले में चुप्पी साध ली है। कैप्टन ने विधानसभा के बजट सत्र के दौरान सदन में एलान किया था कि इस घोटाले की विजिलेंस से जांच कराई जाएगी। लेकिन खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने आंतरिक जांच में पाया कि कोई घोटाला नहीं हुआ।
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इसके बाद सरकार ने मामला विजिलेंस को नहीं भेजा और इस मामले में पूर्व सरकार को क्लीन चिट दे दी। दरअसल, अकाली-भाजपा सरकार के दौरान केंद्र सरकार से अनाज खरीद को लेकर मिलने वाली कैश क्रेडिट लिमिट (सीसीएल) राशि को केंद्र सरकार ने रोकते हुए पंजाब सरकार को इस मद में बकाया लौटाने को कहा था।
यह बकाया राशि लगभग 31हजार करोड़ रुपये हो चुकी थी। इसके बाद सवाल उठने लगे कि सीसीएल के बकाया के रूप में इतनी बड़ी रकम कैसे खड़ी हो गई और इसके एवज में खरीदा गया अनाज कहां गया?
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चुनाव प्रचार के दौरान कई रैलियों में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने 31 हजार करोड़ रुपये के घोटाले का जिक्र करते हुए लोगों को भरोसा दिलाया कि सत्ता में आने के बाद इसकी जांच करवाएंगे। उन्होंने इस मामले में बादल पिता-पुत्र को सजा दिलाने का भी एलान किया था।
लेकिन सत्ता संभालने के बाद जब खाद्य एवं आपूर्ति विभाग ने मुख्यमंत्री के निर्देश पर इसकी जांच की तो पाया कि बीते 13-14 वर्षों में सीसीएल पर पंजाब और केंद्र सरकार ने कभी आपसी हिसाब-किताब ही नहीं किया, इसके चलते दोनों के बीच लेनदेन में 31हजार करोड़ रुपये का अंतर दिखाई दे रहा है।
इसी तरह धान व गेंहू के सीजन में अनाज खरीद से लेकर एफसीआई को सौंपने तक 4-5 माह लग जाते हैं। इस दौरान अनाज खरीद के लिए बैंक राज्य सरकार को जो कर्ज देते थे, उस पर 4-5 माह का ब्याज भी पंजाब सरकार के खाते में ही जुड़ता रहा।
कोई घोटाला नहीं हुआ है। पंजाब सरकार के सिर अतिरिक्त देनदारी है, इसलिए विजिलेंस जांच किस बात की करवाई जाए। विभाग की जांच हो गई है और सब कुछ साफ है। विजिलेंस जांच की जरूरत नहीं है। केंद्र सरकार ने भी मान लिया है कि पंजाब सरकार के सिर अतिरिक्त बोझ पड़ा है।
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