हिंदी पंचांग के अनुसार, वर्ष के प्रत्येक महीने में पूर्णिमा अथवा चतुर्दशी के दिन पूर्णिमा व्रत मनाया जाता है। तदनुसार, आषाढ़ पूर्णिमा व्रत 4 जुलाई यानी आज है। इस व्रत की तिथि बदलती रहती है। यह व्रत कभी चतुर्दशी, तो कभी पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस व्रत में भगवान सत्यनारायण के निमित्त व्रत-उपवास रखा जाता है। इस व्रत का विशेष महत्व है।
धार्मिक ग्रंथों में लिखा है कि इस व्रत को करने से व्रती के जीवन से दुख-शोक का नाश होता है, जीवन में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन होता है, पुत्र की प्राप्ति होती है और सर्वत्र विजय हासिल करने का वरदान मिलता है। इस व्रत को किसी विशेष तिथि की जरूरत नहीं पड़ती है। आइए, इसके व्रत-उपवास एवं पूजा-विधि को जानते हैं-
पूर्णिमा व्रत की कथा
इस व्रत में सत्यनारायण पूजा का विधान है। इस पूजा के लिए कोई विशेष तिथि नहीं बनाई जाती है, बल्कि किसी दिन प्रातः काल अथवा शाम में सत्यनारायण देव की पूजा कर सकते हैं। हालांकि, शाम का समय अनुकूल माना जाता है।
कथानुसार, एक बार महर्षि नारद ने भगवान विष्णु से कहा- आप तो पालनहार हैं, सर्वज्ञाता हैं। प्रभु-मुझे ऐसी कोई लघु उपाय बताएं, जिसे करने से पृथ्वीवासियों का कल्याण हो। उस समय भगवान विष्णु ने सत्यनारायण पूजा करने की सलाह दी। ऐसा कहा जाता है कि पूर्णिमा तिथि को सत्यनारायण पूजा करने से उत्तम फल प्राप्त होता है।
पूर्णिमा व्रत पूजा विधि
इस व्रत को करने के लिए व्यक्ति को दिन भर उपवास रखना चाहिए। संध्याकाल में किसी प्रकांड पंडित को बुलाकर सत्य नारायण की कथा श्रवण करवाना चाहिए। इस पूजा में सबसे पहले गणेश जी की, इसके बाद इंद्र देव और नवग्रह सहित कुल देवी देवता की पूजा की जाती है। फिर ठाकुर और नारायण जी की।
इसके बाद माता लक्ष्मी, पार्वती सहित सरस्वती की पूजा की जाती है। अंत में भगवान शिव और ब्रह्मा जी की पूजा की जाती है। भगवान को भोग में चरणामृत, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, फल, फूल, पंचगव्य, सुपारी, दूर्वा आदि अर्पित करें। इससे सत्यनारायण देव प्रसन्न होते हैं। इसके बाद आरती और हवन कर पूजा सम्पन्न किया जाता है। साधक आर्थिक क्षमता अनुसार व्रत एवं पूजा का निर्वहन कर सकते हैं।