चीन अपनी सबसे महत्वाकांक्षी ‘वन बेल्ट, वन रूट’ परियोजना को मुकाम तक पहुंचाने के लिए 14 और 15 मई को शिखर सम्मेलन आयोजित कर रहा है. इसमें उसने 29 देशों के राष्ट्राध्यक्षों, 70 अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रमुखों, दुनिया भर के 100 मंत्रिस्तरीय अधिकारियों, विभिन्न देशों के 1200 प्रतिनिधिमंडलों को आमंत्रित किया है. इसमें भारतीय थिंक टैंक भी हिस्सा ले सकता है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ‘वन बेल्ट, वन रूट’ परियोजना यानी न्यू सिल्क रूट परियोजना शिखर सम्मेलन में इसका एजेंडा पेश करेंगे. इसको न्यू सिल्क रूट परियोजना के नाम से भी जाना जाता है.ये भी पढ़े: अभी-अभी: योगी राज में आया एक और जबरदस्त फरमान, जो सुनेगा वही हिल जायेगा…
चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आर्थिक मंदी से जूझ रही अपनी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने और उसमें तेजी लाने के लिए ‘वन बेल्ट, वन रूट’ का आइडिया पेश किया है. चीन दुनिया के 65 देशों और 4.4 अरब जनसंख्या को लालच देकर इसमें फंसा रहा है. ड्रैगन का कहना है कि ‘वन बेल्ट, वन रूट’ परियोजना के तहत इन देशों में भारी भरकम निवेश होगा और बुनियादी ढांचा मजबूत होगा. इसके अलावा इन देशों के लोगों की माली हालत में सुधार होगा और रोजगार के अवसर बढ़ेंगे. हालांकि चीन इससे खुद को होने वाले फायदे को बताने से गुरेज कर रहा है.
आर्थिक विकास के नाम पर कस रहा शिकंजा
ड्रैगन तर्क दे रहा है कि उसकी ‘वन बेल्ट, वन रूट’ परियोजना से दुनिया के देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ेगा और वैश्विक मंदी के असर से निपटेन में मदद मिलेगी. हालांकि भारत और अमेरिका जैसे देश उसकी इस चापलूसी को भलीभांति समझ रहे हैं. अगर हम चीन के विदेशी निवेश पर नजर दौड़ाएं, तो अब तक उसका सबसे खराब रिकॉर्ड रहा है. अब चीन की सरकार ने अपने देश को आर्थिक मंदी से उबारने और बेजोरगारी की समस्या से निपटने के लिए न्यू सिल्क रूट का सहारा लिया है. इसके जरिए वह 65 देशों में सीधे निवेश कर सकेगा यानी इन देशों की अर्थव्यवस्था पर चीन का सीधा दखल होगा, जिसके बाद वह इनको अपने इशारे पर नचाता रहेगा. ऐसे में न्यू सिल्क रूट में अपने पड़ोसी देशों के शामिल होने से भारत बेहद चिंतित है.
भारत को भी शामिल करने की कोशिश में चीन
चीन भारत को भी ‘वन बेल्ट, वन रूट’ परियोजना में शामिल करने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. वह भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था से भी बेहद चिंतित है. वहीं, भारत अपने पड़ोसी देशों के न्यू सिल्क रूट परियोजना में शामिल होने से बेहद चिंतित है. उसको डर है कि इस जाल में फंसकर उसके पड़ोसी देश चीन के नियंत्रण में आ जाएंगे. साथ ही चीन भारत को चारो ओर से घेरने की योजना में कामयाब हो जाएगा.वहीं, पाकिस्तान ने इस परियोज ना के लिए करीब 160 अरब रुपये आवंटित किया है.
वैश्विक बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी बन जाएगा चीन
चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार का सबसे बड़ा खिलाड़ी बनना चाहता है. इसके पीछे चीन का एक और भी स्वार्थ छिपा हुआ है. हाल ही में विश्व में चीनी वस्तुओं की मांग में भारी गिरावट आई है. इससे चीन के सामने अपने सामान को बेचने के लिए बाजार की तलाश है. चीनी सामानों की सप्लाई कम होने से वहां मौजूदा समय में बेरोजगारी का स्तर भी काफी बढ़ा है, जो चीन के लिए सिरदर्द बना हुआ है. हाल ही में कई चीनी कंपनियों को करोड़ों कर्मचारियों को निकालना पड़ा है. ऐसे में चीन इस परियोजना के जरिए वैश्विक बाजार में अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है, जहां वह अपने ओवर प्रोडक्शन को आसानी से सप्लाई कर सकेगा. चीन की इस परियोजना से अमेरिका भी बेहद चिंतित है. वह चीन की इस परियोजना की काट नहीं ढूंढ़ पा रहा है.