नई दिल्ली: आज केन्द्र की मोदी सरकार अपने चार साल पूरे कर चुकी है। चार साल पूरने करने की खुशी में केन्द्र व अन्य राज्यों में भाजपा की सरकार इसका जश्न मना रही है। वहीं विपक्षी दल मोदी सरकार के इन चार सालों को लेकर काफी गुस्से व रोष में हैं। सत्ता और विपक्ष का यह खेल को चोली और दाम का है। इस बीच चलिए हम आपको मोदी सरकार के इन चार में देश की अर्थव्यवस्था के संबंध में कुछ बताते हैं। इसके बाद फैसला खुद आप कर सकेते हैं कि सरकार ने काम किया या नहीं।
रुपये
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की ओर से दिए गए रेफरेंस रेट्स से पता चलता है कि 25 मई 2018 तक डॉलर के मुकाबले रुपया 16 प्रतिशत से ज्यादा टूट गया। यानी इस दौरान एक डॉलर की कीमत 10 रुपये बढ़कर 68.21 रुपये तक पहुंच गयी। कई ब्रोकरेज हाउसों का मानना है कि जल्द ही रुपया डॉलर के मुकाबले 70 प्रतिशत के स्तर को छूएगा।
शेयर बाजार
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से सेंसेक्स और निफ्टी करीब 40 प्रतिशत चढ़े हैं। 26 मई 2014 को सेंसेक्स 27,716.90 पर था जो 25 मई 2018 को 34,924.87 का स्तर छू लिया। इस दौरान सेंसेक्स ने 29 जनवरी 2018 को 36,443 अकों का सर्वोच्च स्तर प्राप्त कर लिया था जबकि निफ्टी निफ्टी पहली बार 10,000 के आंकड़े को पार कर लिया। 25 मई को निफ्टी 10605.15 अंक पर बंद हुआ।
महंगाई
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के आंकड़े बताते हैं कि मई 2014 में महंगाई 8.48 प्रतिशत पर था जो पिछले महीने अप्रैल 2018 में करीब आधे 4.58 प्रतिशत पर थी। जून 2017 में तो महंगाई गिरकर 1.46 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी।
एफडीआई की आवक
वित्त वर्ष 2014 में देश में 23.30 अबर डॉलर की एफडीआई आई थी जो वित्त वर्ष 2017 में करीब-करीब दोगुना होकर 43.50 अरब डॉलर हो गई। हालांकि पिछले कुछ महीनों में विदेशी निवेश में कमी आई है लेकिन अप्रैल-दिसंबर 2017 में 0.27 प्रतिशत की सालाना वृद्धि दर से 35.94 अरब डॉलर एफडीआई देश में आई। पिछले साल एफडीआई आकर्षित करने वाले देशों की लिस्ट में भारत 10वें स्थान पर था।
एनपीए यानि फंसा कर्ज
बैंकों के फंसे कर्ज की रकम में वृद्धि मोदी सरकार का बड़ा सिरदर्द साबित हो रही है। दिसंबर 2018 तक सरकारी बैंकों का ग्रॉस एनपीए बढ़कर 7.8 लाख रुपये हो चुका था जो जून 2014 में 2.14 लाख करोड़ ही था। मोदी सरकार के कार्यकाल में प्राइवेट बैंकों के एनपीए भी बढ़े हैं। दिसंबर- मार्च 2018 की तिमाही में देश के 25 बैंकों को कुल 7.31 लाख करोड़ रुपये का लोन एनपीए घोषित करना पड़ा। यह पिछली दिसंबर-मार्च 2017 के आंकड़े से 50 प्रतिशत ज्यादा है।
विदेशी मुद्रा भंडार
देश का फॉरेक्स रिजर्व पिछले चार सालों में करीब 35 प्रतिशत बढ़ गया। 11 मई 2018 को सरकार के पास 417 अरब डॉलर का रिजर्व हो गया था जो 30 मई 2014 को 312.66 अरब डॉलर रहा था। अप्रैल 2018 में विदेशी मुद्रा भंडार 426.08 अरब डॉलर के रेकॉर्ड स्तर को छू लिया था।
फैक्ट्री आउटपुट
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक यानि आईआईपी खनिज, खनन, बिजली और विनिर्माण जैसे प्रमुख क्षेत्रों का सही हालचाल बताता है जो पिछले चार सालों में बहुत उतार-चढ़ाव के दौर से गुजरा है। हालांकि अप्रैल 2018 में यह 4.40 प्रतिशत के साथ मई 2017 के 4.70 प्रतिशत के आसपास ही रहा। अक्टूबर 2015 में आईआईपी चार सालों के सर्वोच्च स्तर 9 प्रतिशत पर पहुंच गया था। नोटबंदी और जीएसटी के असर से जून 2017 में आईआईपी डेटा गिरकर 0.30 प्रतिशत तक आ गिरा था जो जून 2016 में 8 प्रतिशत था। अब आईआईपी डेटा फिर से उछाल भरने लगा है और अप्रैल 2018 में इसके 6.5 से 7.5 प्रतिशत तक रहने का अनुमान जताया जा रहा है।
सकल घरेलू उत्पाद जीडीप
सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के आंकड़े के अनुसार भारत का सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी अक्टूबर-दिसंबर 2017 तिमाही में अनुमान से ज्यादा 7.2 प्रतिशत बढ़ा और भारत ने चीन 6.8: प्रतिशत को इस मोर्चे पर फिर से मात दे दी। रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि भारती जीडीपी जनवरी-मार्च 2018 तिमाही में 7.4 प्रतिशत की दर से बढ़ी है।
सुधारों का श्रेय
इसने विभिन्न क्षेत्रों में सुधारों की झड़ी लगा दी। उसे प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एफडीआई आकर्षित करने, कारोबार करना आसान बनाने ईज ऑफ डुइंग बिजनस देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाने, ज्यादा से ज्यादा नौकरियां पैदा करने और तेज आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में भी सुधारों का श्रेय दिया
काले धन पर चौतरफा वार
मोदी सरकार के चार वर्ष के कार्यकाल में जीएसटी का क्रियान्वयन, कालेधन को बाहर निकालने के मकसद से नोटबंदी का ऐलान, बैंकिंग सेक्टर के फंसे कर्ज की समस्या के समाधान के लिए दिवालिया कानून में संशोधन एवं भ्रष्टाचार रोकने के लिए सरकारी सब्सिडी सिस्टम में सुधार के साथ-साथ ग्रामीण विद्युतीकरण सबको अपना घर, डिजिटाइजेशन आदि जैसे तमाम महत्वाकांक्षी योजनाएं सामने आईं।
नौकरियों पर घिरी सरकार
इस दौरान अर्थव्यवस्था में ऐसी कृत्रिम नगदी संकट पैदा करने के लिए सरकार की आलोचना भी होती है जिससे खपत को आघात पहुंचाए पटरी पर चढ़ रही अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ गईए छोटे.छोटे कारोबार को नुकसान पहुंचा। आलोचक मोदी सरकार को अपेक्षित संख्या में नौकरियां पैदा कर पाने में असफल रहने का भी आरोप लगाते हैं। सभार-एनबीटी