केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन में पिछले तीन साल की प्रगति की समीक्षा की है। इस समीक्षा के आधार पर यह भरोसा जताया गया है कि 2030 से काफी पहले ही सतत विकास के लक्ष्य (एसडीजी) हासिल कर लिए जाएंगे। कैबिनेट बैठक की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने बताया कि इस मिशन ने स्वास्थ्य के ढांचे में ऐतिहासिक असर डाला है।
पिछते तीन साल में 12 लाख हेल्थकेयर वर्कर इस मिशन से जुड़े हैं। यह मिशन कोरोना महामारी के प्रकोप से निपटने में भी काफी कारगर रहा है। सरकार की ओर से कहा गया है कि पिछले तीन साल में शिशुओं और माताओं के स्वास्थ्य, बीमारियों के उन्मूलन, हेल्थकेयर के बुनियादी ढांचे के साथ ही स्वास्थ्य से जुड़े हर क्षेत्र में इस मिशन ने उल्लेखनीय प्रभाव डाला है।
मातृ और शिशु मृत्यु दर में तेजी से कमी आई
अगले दो साल में मिशन में और तेजी से काम किया जाएगा ताकि एसडीजी के लक्ष्यों को समय से पहले हासिल किया जा सके। 2021-22 से 2023-24 के बीच मिशन के क्रियान्वयन की समीक्षा के साथ ही यह बताया गया कि मातृ और शिशु मृत्यु दर में तेजी से कमी आई है।
10 साल में 25 प्रतिशत कम हुई मातृ मृत्यु दर
2014-15 के मुकाबले मातृ मृत्यु दर में 25 प्रतिशत तक की कमी आई है, जबकि पांच साल तक के बच्चों की मृत्यु दर में 75 प्रतिशत तक कमी आई है। यह वैश्विक स्थिति से भी बेहतर है। इसी आधार पर तीन कसौटियों-शिशु, नवजात और मातृ मृत्यु दर में एसडीजी लक्ष्य 2030 से ही पहले पूरे होने का भरोसा जताया गया है।
इन बीमारियों के खिलाफ चलाए गए अभियान
टीबी, मलेरिया, काला-अजार, डेंगू, लेप्रसी, वायरल हेपेटाइटिस आदि बीमारियों के खिलाफ चलाए जाने वाले कार्यक्रमों को भी नेशनल हेल्थ मिशन ने बल प्रदान किया है। अब नेशनल सिकल सेल एनीमिया इलिमेशन मिशन के रूप में एक नया कार्यक्रम भी शुरू किया गया है।
मानव संसाधन बढ़ाना हेल्थ मिशन की उपलब्धि
सरकार की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि नेशनल हेल्थ मिशन की एक बड़ी उपलब्धि हेल्थकेयर में मानव संसाधन बढ़ाना रही है।
2021-22 में एनएचएम से 2.69 लाख अतिरिक्त हेल्थकेयर वर्कर जुड़े, जिनमें जनरल ड्यूटी मेडिकल आफिसर, विशेषज्ञ, स्टाफ नर्स, आयुष डाक्टर, आशा वर्कर, पब्लिक हेल्थ मैनेजर शामिल हैं।
90,740 सामुदायिक हेल्थ अफसर भी मिशन से जोड़े गए। 2022-23 में 4.21 लाख और हेल्थकेयर वर्कर शामिल हुए। इसी तरह 2023-24 में 5.23 लाख वर्कर मिशन से जुड़े।
कच्चे जूट का समर्थन मूल्य 315 रुपये बढ़ा
कैबिनेट ने एक और अहम फैसला करते हुए कच्चे जूट के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य में छह प्रतिशत की बढ़ोतरी करने का भी फैसला किया। 315 रुपये की इस वृद्धि के साथ कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य अब 5650 रुपये हो गया है। गोयल ने बताया कि 2014-15 में कच्चे जूट का समर्थन मूल्य 2400 रुपये था, जो अब लगभग ढाई गुना बढ़ चुका है।
किसानों को लागत का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य मिले
2025-26 सीजन के लिए की गई वृद्धि के बाद उत्पादन की औसत लागत का 66.8 प्रतिशत मुनाफा किसानों को मिल सकेगा। इससे उन्हें अपनी आमदनी बढ़ाने का बड़ा मौका मिल गया है। सरकार ने कहा है कि कच्चे जूट के समर्थन मूल्य में यह बढ़ोतरी एमएसपी तय करने में सरकार के इस सिद्धांत के अनुरूप है कि किसानों को उनकी लागत का डेढ़ गुना धन समर्थन मूल्य के रूप में मिलना चाहिए।
जूट उद्योग से 40 लाख किसान परिवार जुड़े
जूट उद्योग से 40 लाख किसान परिवार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जुड़े हैं। लगभग चार लाख श्रमिकों को जूट मिलों में सीधे नौकरी मिलती है। पिछले साल 1.7 लाख किसानों से जूट खरीदा गया था। 82 प्रतिशत जुट किसान बंगाल में हैं, जबकि असम और बिहार में जूट उत्पादन का 9-9 प्रतिशत हिस्सा है।