करीब 85 फीसदी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने मौत की सजा को बरकरार रखने का समर्थन किया है. सिर्फ दो राज्यों कर्नाटक और त्रिपुरा ने सजा-ए-माैत यानी फांसी की सजा को खत्म करने का समर्थन किया है.
असल में, गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पत्र लिखकर इस पर राय मांगी थी कि क्या मौत की सजा को खत्म कर दिया जाए. लेकिन अभी तक सिर्फ 14 राज्यों का जवाब मिल पाया है, जिसमें से 12 ने फांसी की सजा को बरकरार रखने का समर्थन किया है.
सिर्फ कर्नाटक और त्रिपुरा ने इसे खत्म करने का समर्थन किया. इंडियन एक्सप्रेस की खबर के अनुसार, फांसी की सजा का समर्थन करने वाले 12 राज्यों का तर्क था कि हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों के मामले में इस सजा की वजह से थोड़ा डर कायम होता है. जस्टिस एपी शाह की अध्यक्षता में लॉ कमीशन ने साल 2015 की अपनी रिपोर्ट में यह प्रस्ताव रखा था कि गैर आतंकवाद वाले सभी मामलों में फांसी की सजा को खत्म कर देना चाहिए.
इसके बाद गृह मंत्रालय ने राज्य सरकारों की राय मांगी थी. फांसी की सजा को खत्म करने का विरोध करने वाले राज्यों में गुजरात, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, बिहार, झारखंड, तमिलनाडु और दिल्ली शामिल हैं. अभी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों ने भी अपनी राय नहीं भेजी है. त्रिपुरा में सरकार बदल गई है, इसलिए हो सकता है कि वहां से भी अब नई राय सामने आए.
चीन, ईरान, इराक, सऊदी अरब जैसे देशों कतार में भारत
लॉ कमीशन की रिपोर्ट के अनुसार भारत फांसी की सजा देने वाले चंद देशों में शामिल है. इन देशों में चीन, ईरान, इराक, सऊदी अरब जैसे देश शामिल हैं. साल 2014 के अंत तक 98 देशों ने फांसी की सजा खत्म कर दी. सात देशों ने साधारण अपराधों के लिए और 35 अन्य ने व्यवहार में इसे खत्म कर दिया है. इस तरह अब 140 देशों में कानून या व्यवहार के स्तर पर फांसी की सजा खत्म हो चुकी है. सूरीनाम, मेडागास्कर और फिजी में साल 2015 में फांसी की सजा खत्म कर दी गई.
भारत में हाल के दिनों की बात की जाए तो नवंबर 2012 में 26/11 के गुनहगार आतंकी अजमल कसाब को फांसी दी गई थी. इसके बाद 2001 के संसद हमले के दोषी अफजल गुरु को फरवरी 2013 में और 1993 में मुंबई बम विस्फोट के दोषी याकूब मेनन को जुलाई 2015 में फांसी दी गई.
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