हज सब्सिडी का अंत और राजनीति की नई इबारत। सच में सियासत की नई राह है। केन्द्र सरकार ने यह कदम उच्चतम न्यायालयकी अनुपालना के क्रम में उठाया है, लेकिन इसके राजनीतिक माने भी कम नहीं हैं। शीर्ष अदालत के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अफताब आलम की अध्यक्षता वाली पीठ ने मई 2012 में 2022 तक हज सब्सिडी खत्म करने का आदेश दिया था, लेकिन केन्द्र सरकार ने 16 जनवरी 2018 को ही यह निर्णय ले लिया है। केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने हज की यात्रा पर जाने वाले पौने दो लाख जायरीनों के लिए जारी होने वाली 700 करोड़ रुपये की सब्सिडी को समाज की लड़कियों की शिक्षा पर खर्च करने की बात कही है। लेकिन राजनीति के पंडित इसके तरह-तरह के माने निकाल रहे हैं। कांग्रेस के नेता सॉफ्ट हिन्दुत्व की लाईन पर आगे बढ़ चुके हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी गुजरात विधानसभा चुनाव प्रचार पर निकलने से पहले मंदिर जाना नहीं भूलते थे। अमेठी के दौरे में भी उन्होंने कथा-पूजा का पूरा ध्यान रखा। शायद यही वजह थी कि प्रमोद तिवारी जैसे घुटे हुए राजनेता हज सब्सिडी को लेकर आए सवाल पर जल्दबाजी में कोई जवाब नहीं दिया। इस पर जवाब देने के लिए कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी को आने में कुछ घंटे लग गए, वह भी बड़े ही सधे हुए अंदाज में। दरअसल यह खबर टीवी की स्क्रीन पर आते ही कांग्रेस मुख्यालय में इस खबर की अहमियत टटोली जाने लगी थी, क्योंकि गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार भले ही झेली हो पर चुनाव के नतीजों ने उसमें नई जान फूंक दी है।