नही दिल्ली : करोड़ों का Business, Flats और पति-पत्नी दोनों के पास डिग्रियां होने के बावजूद इस परिवार की हालत मजदूरों से भी खराब थी। न तो उनके घर में लाइट, न टीवी, न फ्रिज और न ही उनके बच्चे कभी स्कूल गए।
बाप रे! 1000 हजार रुपए के इस एक अंडे से बन सकता है 10 लोगों के लिए ऑमलेट…
इंदौर के स्नेहलतागंज में रहने वाले बडज़ात्या परिवार फॉली ए फैमिली और शेयर्ड सायकोसिस नाम की मनोवैज्ञानिक बीमारी से पीडि़त अंकुर बडज़ात्या (बदला हुआ नाम) का परिवार 10 साल बाद अब घर से बाहर निकला है और सामान्य जिंदगी जीने की कोशिश कर रहा है। यह सब उसकी मां के कारण संभव होने जा रहा है।समय पर ध्यान नहीं देने से पति-पत्नी के साथ पूरा परिवार इस बीमारी की चपेट में आ गया। अंकुर के तीन बच्चे हैं। बड़ी बेटी 9 साल की है और 7 व 1 साल के दो बेटे हैं। दस साल से बेटे, बहू व पोते-पोतियों की इस बीमारी की पीड़ा झेल रही अंकुर की मां वीणा बड़जात्या एक मनोचिकित्सक की मदद से सभी को ठीक करने की कोशिश में जुटी हैं।वीणा के मुताबिक- हमारा मार्बल्स का काफी बड़ा कारोबार है। बेटे की शादी के बाद सबकुछ सामान्य चल रहा था, लेकिन दस साल पहले उसके स्वभाव में बदलाव दिखने लगा। गुस्सा, शक, चिड़चिड़ापन और कामकाज पर ध्यान नहीं देना सहनशक्ति के बाहर हो गया तो मैं भी पास में अलग रहने लगी। धीरे-धीरे उससे संपर्क खत्म होने लगा।वीणा के मुताबिक, वह हर चीज से डरने लगा था। बार-बार कहता था कि वो मुझे मार देंगे। टीवी, फ्रिज, मशीनें, ट्यूबलाइट सभी तोड़-फोड़ दिए। घर की सारी वायरिंग तोड़ दी। इस बीच तीन बच्चे हुए, लेकिन वह पत्नी को लेकर कब अस्पताल गया और आया, इसकी भनक किसी को नहीं थी। बच्चे भी बंद घर में अंदर ही रहते थे। मां खाना भेजती थी तो दरवाजा खोलकर खाना अंदर लेते और फिर बंद करके रहने लगते। तीन साल से अंकुर नहाया भी नहीं था। वीणा के अनुसार- वह परिवार पर भूत-प्रेत का साया समझकर तंत्र-मंत्र पूजा-पाठ पर लाखों रुपए खर्च कर चुकी, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।बीमारी के लक्षण– अचानक स्वभाव में बदलाव।– लोगों से मिलने-जुलने से कतराना।– कामधंधा छोड़कर घर बैठना।– बार-बार एक ही बात दोहराना।– अपना डर अपने सबसे करीबी (पति या पत्नी या बच्चों) पर भी हावी कर देना।समय पर ट्रीटमेंट नहीं मिलने से बर्बाद हो जाते हैं लोगमनोचिकित्सक डॉ. पवन राठी ने बताया कि जब मरीज से बीमारी दूसरे में चली जाती है तो उसे शेयर्ड सायकोसिस कहते हैं। यह रेयरेस्ट बीमारी है। पति के साथ-साथ पत्नी और बच्चे भी इसके शिकार हो गए। सही समय पर ट्रीटमेंट जरूरी है, वरना समय पर ट्रीटमेंट नहीं मिलने से बर्बाद हो जाते हैं लोग परिवार बर्बाद हो जाता। पति पर ट्रीटमेंट शुरू किया गया है। उसमें काफी परिवर्तन नजर आ रहा। वह परिवार के साथ धीरे-धीरे बाहर निकलने लगा है। दादी ने 9 और 7 साल के बच्चों का क्षेत्र के ही स्कूल में पहली बार एडमिशन कराया है।