यूपी के लोकसभा उपचुनाव को लेकर देशी-विदेशी सभी मीडिया की निगाहें जमी हुई हैं. इसमें सीएम योगी आदित्यनाथ के इस्तीफ से खाली हुई गोरखपुर लोकसभा सीट सबसे महत्वपूर्ण है. इस चुनाव में सभी सियासी दलों की नजर ब्राह्मण-निषाद वोटों पर है, इसलिए दो प्रमुख राजनीतिक दल भाजपा-कांग्रेस ने ब्राह्मण तो सपा ने निषाद समाज से अपना प्रत्याशी बनाया है. ऐसे में देखना होगा कि चुनावी ऊंट किस करवट बैठता है.
दरअसल, गोरखपुर संसदीय इलाके में करीब साढ़े तीन लाख निषाद और करीब दो लाख ब्राह्मण वोटर हैं, जो किसी भी प्रत्याशी की जीत हार को तय करते हैं. इसी को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने ब्राह्मण प्रत्याशी पर दांव लगाया है. कांग्रेस की प्रत्याशी सुरहिता करीम की शादी गोरखपुर के प्रसिद्ध डाक्टर वजाहत करीम से हुई है लेकिन सुरहिता के पिता बंगाली ब्राह्मण हैं. कांग्रेस ने उम्मीदवार घोषित करते समय सुरहिता के नाम के साथ चटर्जी पर भी जोर देकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे. उधर, भाजपा ने भी अपना उम्मीदवार उपेंद्र शुक्ल को घोषित कर दिया है. जबकि सपा ने प्रवीन कुमार निषाद को अपना प्रत्याशी बनाया है.
पत्रकार हेमंत पांडेय के मुताबिक, अगर बीते पांच चुनावों की चर्चा की जाए तो सीएम योगी को घेरने के लिए सभी राजनीतिक दलों ने समय-समय पर ब्राह्मण और निषाद प्रत्याशी को खड़ा किया था. सपा ने 2009 को छोड़कर हमेशा से निषाद समुदाय से उम्मीदवार को खड़ा किया. लेकिन 1998 और 1999 में ही सिर्फ जमुना निषाद ने योगी को घेरने में सफलता पाई थी. हालांकि योगी सात और बारह हजार मतों से जीतने में सफल हुए थे. वहीं, भाजपा ठाकुर-बनिया मतों को अपना वोट बैंक मानकर चल रही है. दरअसल, नाथ सम्प्रदाय का प्रमुख केंद्र गोरखनाथ के महंत छत्रिय समुदाय से आते हैं और बनिया भाजपा का परम्परागत वोट बैंक रहा है. वैसे भी गोरखपुर के मेयर और विधायक भाजपा से ही हैं और मेयर सीताराम जायसवाल बनिया समुदाय से हैं.
साल 1999 में जैसे-तैसे जीते थे योगी आदित्यनाथ
योगी आदित्यनाथ गोरखपुर सीट से पांच बार (2014, 2009, 2004, 1999, 1998) सांसद बने. इनमें से चार बार उनका मुकाबला जमुना प्रसाद निषाद और उनके परिवार से रहा. एक बार पूर्व मंत्री हरिशंकर तिवारी के बेटे विनय शंकर तिवारी से योगी का मुकाबला हुआ. शुरुआती दो चुनावों में जमुना प्रसाद निषाद ने योगी आदित्यनाथ का जबरदस्त टक्कर दी थी. 1998 के चुनाव में जीत-हार का अंतर महज 26206 वोटों का रहा. इसके अगले साल साल 1999 में दोबारा चुनाव हुआ तो योगी आदित्यनाथ को जमुना प्रसाद निषाद ने और भी कड़ी टक्कर दी और जीत हार का अंतर महज 7339 पर सिमट गया.
सीएम की साख दांव पर
मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ विधान परिषद के सदस्य हैं. गोरखपुर परपंरागत रूप से बीजेपी की सीट है. 1989 से बीजेपी के कब्जे में ये सीट है. योगी आदित्यनाथ पांच बार सांसद चुने गए. इससे पहले तीन बार महंत अवैद्यनाथ सांसद थे. जाहिर यहां का समीकरण बीजेपी के पक्ष में लगातार रहा है, लेकिन इस बार मुख्यमंत्री की साख दांव पर है.
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