दूसरी बार चीन के राष्ट्रपति चुने गये जिनपिंग, वांग बने उपराष्ट्रपति
दलाई लामा ने आगे कहा कि सार्वजनिक हित राष्ट्रीय हित से अधिक महत्वपू्र्ण है। उसी तरह की धारणा के साथ मैं रिपब्लिक ऑफ चाइना के साथ रहने का इच्छुक हूं। उन्होंने आगे कहा कि चाइनीज शब्द ‘गोनघीगुओ’ (गणतंत्र) शब्द में भी एक तरह की एकता दिखाई देती है। बीजिंग द्वारा दलाई लामा को खतरनाक पृथक्तावादी भी माना जाता रहा है।
आपको बता दें कि 13वें दलाई लामा ने साल 1912 में तिब्बत को स्वतंत्र घोषित कर दिया था। इसके करीब 40 साल बाद चीन ने तिब्बत पर आक्रमण किया। यह आक्रमण उस समय किया गया जब वहां 14वें दलाई लामा के चुनने की प्रक्रिया चल रही थी। इस लड़ाई में तिब्बत को हार का सामना करना पड़ा था। इसके कुछ ही सालों बाद तिब्बत के लोगों ने चीनी शासन के खिलाफ कार्रवाई कर अपनी संप्रभुता की मांग की। जब दलाई लामा को लगा कि वह चीन के चंगुल में फंस जाएंगे तब उन्होंने साल 1959 में भारत की शरण ली।
हालांकि दलाई लामा और चीन के कम्युनिस्ट शासन के बीच तनाव लगातार बढ़ता गया। जिसके बाद अभी तक वह निर्वासन की जिंदगी जी रहे हैं। अब दलाई लामा का कहना है कि वह चीन से आजादी नहीं चाहते, लेकिन स्वायत्ता चाहते हैं। बता दें कि 1950 में शुरू हुआ दलाई लामा और चीन के बीच का विवाद अभी तक खत्म नहीं हुआ है। साथ ही दलाई लामा को शरण देने के कारण भारत और चीन के रिश्तों में भी खटास आई है।
TOS News Latest Hindi Breaking News and Features