भगवान शिव के हर रूप के पीछे कोई ना कोई रहस्य छिपा है। हिन्दू कथाओं के अनुसार शिवजी अपने शरीर पर भस्म लगाते थे। भस्म यानि कुछ जलाने के बाद बची हुई राख। लेकिन किसी धातु या लकड़ी को जलाकर बची हुई राख नहीं है। बल्कि शिव जली हुई चिताओं के बाद बची हुई राख को अपने शरीर पर लगाते थे, लेकिन वे ऐसा क्यों करते थे?

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इसका अर्थ पवित्रता में छिपा है, वह पवित्रता जिसे भगवान शिव ने एक मृत व्यक्ति की जली हुई चिता में खोजा है। जिसे अपने तन पर लगाकर वे उस पवित्रता को सम्मान देते हैं। कहते हैं शरीर पर भस्म लगाकर भगवान शिव खुद को मृत आत्मा से जोड़ते हैं। मरने के बाद मृत व्यक्ति को जलाने के पश्चात बची हुई राख में उसके जीवन का कोई कण शेष नहीं रहता। ना उसके दुख, ना सुख, ना कोई बुराई और ना ही उसकी कोई अच्छाई।
इसलिए वह राख पवित्र है, उसमें किसी प्रकार का गुण-अवगुण नहीं है, ऐसी राख को भगवान शिव अपने तन पर लगाकर सम्मानित करते हैं। लेकिन भस्म और भगवान शिव का रिश्ता मात्र इतना ही नहीं है। इससे जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है। भगवान शिव जब अपनी पहली पत्नी सती मृत शव को लेकर इधर उधर घूमने लगे, तब श्रीहरि ने शिवजी के इस दुखद रवैया को देखा तो उन्होंने जल्द से जल्द कोई हल निकालने की कोशिश की।
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श्रीहरि ने माता सती के मृत शरीर का स्पर्श कर इस शरीर को भस्म में बदल दिया। अपनी पत्नी से जुदाई का दर्द शिवजी बर्दाश्त नहीं पर पा रहे थे। इसलिए उन्होंने उस भस्म को अपनी पत्नी की आखिरी निशानी मानते हुए अपने शरीर पर लगा लिया, ताकि सती भस्म के कणों के जरिए हमेशा उनके साथ ही रहें।
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