फर्जी खबरों (फेक न्यूज) के प्रकाशन पर सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी किए गए दिशा निर्देशों पर हंगामे के बाद गुजरात के सूरत से मीडिया पर पाबंदी का फरमान जारी हुआ है. ये फरमान सूरत के पुलिस कमिश्नर ने जारी किया है.
सूरत के पुलिस कमिश्नर सतीश शर्मा ने विवादित फरमान जारी करते हुए कहा कि पुलिस थानों या घटनास्थल पर रिपोर्टिंग के लिए जाने से पहले मीडिया को पुलिस इंस्पेक्टर या थाना इंचार्ज की मंजूरी लेनी होगी. कमिश्वर ने बयान जारी करते हुए मीडिया कर्मियों पर नियंत्रण की बात कही है.
इससे पहले मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने फेकन्यूज/फर्जी खबरों को लेकर सोमवार को जारी की गयी अपनी विज्ञप्ति को वापस ले लिया. फर्जी खबरों को लेकर मंत्रालय के इस दिशा निर्देश की पत्रकारों एवं विपक्षी दलों ने व्यापक आलोचना की और इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर आघात बताया.
मंत्रालय की ओर से सोमवार को जारी इस विज्ञप्ति को लेकर सरकार की चौतरफा आलोचनाओं के बीच प्रधानमंत्री मोदी ने मंगलवार सुबह ही इन दिशा-निर्देशों को वापस लेने को कहा. सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों ने पुष्टि करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री कार्यालय से उन्हें निर्देश प्राप्त हुए हैं और इसी आधार पर उन्होंने विज्ञप्ति वापस ले ली है.
संक्षिप्त बयान में मंत्रालय ने कहा है, ‘‘फेक न्यूज को नियमित करने के संबंध में दो अप्रैल, 2018 को पत्र सूचना कार्यालय से ‘‘पत्रकारों के मान्यता पत्र के लिए संशोधित दिशा-निर्देश’’ शीर्षक से जारी प्रेस विज्ञप्ति वापस ली जाती है.’’
फर्जी खबरों से निपटने की जिम्मेदारी PCI और NBA की
प्रधानमंत्री कार्यालय ने मंगलवार सुबह मंत्रालय को विज्ञप्ति वापस लेने का निर्देश देते हुए कहा था कि फेकन्यूज से निपटने की जिम्मेदारी पीसीआई और एनबीए जैसी संस्थाओं की होनी चाहिए.
पीएमओ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, प्रधानमंत्री ने निर्देश दिया है कि फर्जी खबरों से जुड़ी प्रेस विज्ञप्ति को वापस लिया जाए और ऐसे मामलों से निपटने के विषय को प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया पर छोड़ दिया जाए. अधिकारी ने बताया कि प्रधानमंत्री का यह भी मत है कि सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
पत्रकारों पर कार्रवाई का था दिशा निर्देश
फर्जी खबरों पर अंकुश लगाने के उपाय के तहत सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सोमवार को जारी दिशा निर्देशों में कहा था कि अगर कोई पत्रकार फर्जी खबरें करता हुआ या इनका दुष्प्रचार करते हुए पाया जाता है तो उसकी मान्यता स्थायी रूप से रद्द की जा सकती है.
सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने विज्ञप्ति में कहा था कि पत्रकारों की मान्यता के लिये संशोधित दिशानिर्देशों के मुताबिक अगर फर्जी खबर के प्रकाशन या प्रसारण की पुष्टि होती है तो पहली बार ऐसा करते पाये जाने पर पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिये निलंबित की जायेगी और दूसरी बार ऐसा करते पाये जाने पर उसकी मान्यता एक साल के लिये निलंबित की जायेगी.
इसके अनुसार, तीसरी बार उल्लंघन करते पाये जाने पर पत्रकार (महिला/पुरूष) की मान्यता स्थायी रूप से रद्द कर दी जायेगी.
मंत्रालय ने कहा था कि अगर फर्जी खबर के मामले प्रिंट मीडिया से संबद्ध हैं तो इसकी कोई भी शिकायत भारतीय प्रेस परिषद (पीसीआई) को भेजी जायेगी और अगर यह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संबद्ध पाया जाता है तो शिकायत न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन (एनबीए) को भेजी जायेगी ताकि यह निर्धारित हो सके कि खबर फर्जी है या नहीं.
मंत्रालय ने कहा था कि इन एजेंसियों को 15 दिन के अंदर खबर के फर्जी होने का निर्धारण करना होगा.
कांग्रेस ने कहा- चरम पर पहुंच गया है फासीवाद
कांग्रेस ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि फासीवाद चरम पर पहुंच गया है क्योंकि ‘भ्रामक नियमों’ के माध्यम से स्वतंत्र आवाज को दबाने का प्रयास किया जा रहा है. आम आदमी पार्टी और माकपा ने इसकी तुलना आपातकाल से की.
प्रेस क्लब आफ इंडिया के अध्यक्ष गौतम लाहिरी ने कहा कि सरकार के पास प्रेस पर नियंत्रण करने का अधिकार नहीं है. फर्जी खबरों को लेकर मीडिया भी चिंतित है लेकिन ऐसी शिकायतों से निपटने का उचित मंच प्रेस परिषद है.
वरिष्ठ पत्रकार एच के दुआ ने कहा कि प्रेस विज्ञप्ति पूरी तरह से फर्जी है और यह खतरनाक बात है. इसका अर्थ यह है कि सरकार प्रेस को नियंत्रण में लेना चाहती है.
पत्रकारों को रिपोर्टिंग से रोकने की कोशिशः अहमद पटेल
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाते हुए कहा कि क्या यह संवाददाताओं को ऐसी खबरों की रिपोर्टिंग करने से रोकना है जो सरकारी प्रतिष्ठानों के लिये असहज हो.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री एवं तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने का निरंकुश कदम करार दिया और कहा कि इससे स्पष्ट होता है कि सरकार राह भटक चुकी है.
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने 1975 से 1977 के बीच 21 महीने के दौरान लगाये गए आपातकाल के दिनों को याद करते हुए कहा कि उनकी पार्टी इसकी निंदा करता है.
प्रेस पर पाबंदी को लेकर विवादों में रही राजस्थान सरकार
बता दें कि पिछले साल अक्टूबर में राजस्थान सरकार ने आपराधिक कानून राजस्थान संशोधन अध्यादेश, 2017 जारी किया था. इसके तहत राज्य के सेवानिवृत्त एवं सेवारत न्यायाधीशों, मजिस्ट्रेटों और लोकसेवकों के खिलाफ ड्यूटी के दौरान किसी कार्रवाई को लेकर सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जांच से उन्हें संरक्षण देने की बात कही गई थी. यह विधेयक बिना अनुमति के ऐसे मामलों की मीडिया रिपोर्टिंग पर भी रोक लगाता है.
द एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने एक बयान जारी करते हुए इसे मीडिया को परेशान करने वाला एक खतरनाक यंत्र बताया था. काफी आलोचनाओं के बाद राज्य सरकार ने अध्यादेश को ठंडे बस्ते में डाल दिया.