सुप्रीम कोर्ट का अस्तित्व खतरे में है और यदि जजों की नियुक्ति के मामले में सरकार की चुप्पी पर कोर्ट कुछ नहीं करता है तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा. जस्टिस कुरियन जोसेफ ने भारत के चीफ जस्टिस (CJI) को लिखे एक नए पत्र में यह बात कही है. इससे देश की न्यायिक व्यवस्था में एक बार फिर विवाद शुरू होने और सरकार तथा सुप्रीम कोर्ट के बीच एक तरह का टकराव शुरू होने की आशंका है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, जस्टिस कुरियन जोसेफ ने इस लेटर में लिखा है, ‘कोलेजियम द्वारा एक जज और एक वरिष्ठ वकील को तरक्की देकर सर्वोच्च न्यायालय में लाने की सिफारिश को दबा कर बैठे रहने के सरकार के अभूतपूर्व कदम पर यदि कोर्ट ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो इतिहास हमें माफ नहीं करेगा.’
असल में जस्टिस कुरियन कोलेजियम के फरवरी के उस निर्णय का हवाला दे रहे हैं जिसमें वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा और उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के.एम. जोसेफ को सुप्रीम कोर्ट में जज बनाने की सिफारिश की गई है.
सरकार और सुप्रीम कोर्ट में टकराव की राह!
इस लेटर में काफी जोरदार शब्दों में अपील करते हुए जस्टिस कुरियन जोसफे ने कहा है, ‘पहली बार इस अदालत के इतिहास में ऐसा हुआ है कि किसी सिफारिश पर तीन महीने बाद तक यह पता नहीं चल पा रहा है कि उसका क्या हुआ.’ उन्होंने CJI से कहा कि इस मसले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए सात वरिष्ठ जजों की बेंच के द्वारा सुनवाई की जाए.
उनकी यह मांग अगर मान ली जाती है तो सात जजों की पीठ सरकार को कोलेजियम की लंबित सिफारिशों पर तत्काल निर्णय लेने का आदेश दे सकती है. इसके बाद भी सरकार अगर ऐसा नहीं करती तो उसे न्यायिक अवमानना मानी जाएगी.
जस्टिस कुरियन ने इस लेटर की कॉपी सुप्रीम कोर्ट के 22 अन्य जजों को भी भेजी है. गौरतलब है कि इसके पहले गत 12 जनवरी को जस्टिस कुरियन जोसेफ सहित चार जजों ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर CJI की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए थे.
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