सर्प सदियों से इस धरती पर मौजूद हैं। और इन्हीं के नाम पर काल सर्प दोष की व्याख्या की गई है। मान्यता है कि राहू और केतु के बीच यदि सभी ग्रह हों तो जातक की कुंडली कालसर्प दोष इंगित करती है।
हालांकि कालसर्प के बारे में अलग-अलग मत हैं। ज्योतिष की किसी भी शाखा में कभी भी कालसर्प जैसा योग नहीं बताया गया है। बल्कि कालसर्प दोष का उद्भव पिछले कुछ दशकों से ही शुरू हुआ है। आलम यह है कि भारत का कोई भी ज्योतिषी जो प्राचीन भारतीय ज्योतिष का पक्षधर हो या पश्चिमी हर कोई कालसर्प योग को नकारने में असहज महसूस करेगा।
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जब कालसर्प योग को ज्योतिषियों ने मानना शुरु कर दिया तो कई कालसर्प योग पर आधारित कई ज्योतिषीय किताबें में प्रकाशित हुईं। इनमें कालसर्प दोष की व्याख्या करते हुए इसे 12 तरह का बताया गया।
जो कि क्रमशः अनन्त, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़, घातक, विषधर और शेषनाग नाम के कालसर्प योग हैं।
बैंगलोर के प्रख्यात ज्योतिषी वेंकट रमन ने ज्योतिषीय योगों पर किए अपने अध्ययन में पाया, ‘प्राचीन भारतीय ज्योतिष में कहीं भी कालसर्प योग का उल्लेख नहीं है। केवल एक जगह एक सामान्य सर्प योग के बारे में जानकारी है।’
बल्कि प्राचीन ग्रंथों में इतना ही बताया गया है कि राहू और केतु के मध्य सभी ग्रह होने पर सर्प योग बनता है। फर्ज कीजिए मेष में राहू है और तुला में केतु इसके साथ सारे ग्रह मेष से तुला या तुला से मेष के बीच हों। इसे सर्प योग कहा जाएगा।
पिछली सदी के प्रसिद्ध ज्योतिषी स्वर्गीय डॉक्टर बीवी रमन, ने कालसर्प योग को सिरे से नकार दिया था। वह 60 वर्ष तक एस्ट्रोलॉजिकल-मैगजीन के संपादक रहे थे।
वहीं ज्योतिषी केएन राव के अनुसार मुगल सम्राट अकबर, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंग्लैंड की एकमात्र महिला प्रधानमंत्री रहीं मार्गरेट थेचर, अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को काल सर्प दोष था, लेकिन इन्होंने सफलता के नए सोपान अर्जित किए।
ऐसे अनेक प्रसिद्ध व्यक्तियों की कुंडलियों में राहु-केतु के मध्य में सभी ग्रह थे, जिसे कुछ ज्योतिषी कालसर्प योग की मानते देते हैं, किन्तु फिर भी वह सब अपने जीवन में बड़ी उपलब्धियों को पाने में सफल हुए।
इसलिए कालसर्प योग नाम की भ्रांति है। कालसर्प दोष के बारे में ज्योतिष के किसी प्रामाणिक ग्रंथ में कोई उल्लेख नहीं मिलता है।