इस टीम के तहत उपकरण की पैकिंग से लेकर इनके परिवहन और दुष्प्रभावों पर निगरानी रखेगी। टीम से एनओसी मिलने के बाद ही उपकरण बाजार में बिकने योग्य होगा। दरअसल काफी समय से मेडिकल उपकरणों की कीमत और गुणवत्ता को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय के पास शिकायतों का सिलसिला जारी है। इन्हीं शिकायतों को दूर करने और विदेशी कंपनियों के इन टिकाऊ उपकरणों पर नियंत्रण के लिए सरकार सख्त कदम उठाने जा रही है।
कई उपकरण देते हैं गलत जानकारी, डॉक्टर भी परेशान
बैठक में मौजूद रहे मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि देश में इसे लेकर कोई कानून भी नहीं है। मरीज कई हजार रुपये देकर मशीन खरीदता है। लेकिन जांच के बाद जब वह डॉक्टर के पास पहुंचता है तो परिणाम काफी भिन्न होते हैं। खुद डॉक्टर भी बाजार में आ रहीं ज्यादात्तर मशीनों पर भरोसा नहीं करते हैं। उन्होंने बताया कि ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट (डीसीओ) के अधीन आने के कारण पिछले चार से पांच वर्ष के भीतर भारतीय बाजार में तेजी से चीन और जापान जैसे देशों ने मेडिकल उपकरणों की बिक्री बढ़ाई है।
फिलहाल ये है भारत में स्थिति
अभी तक देश में उच्च रक्तचाप (बीपी), मधुमेह (शुगर) जांचने के डिजिटल उपकरणों की कीमत 500 रुपये से शुरु होकर कई हजार रुपये में है। इसके अलावा पेसमेकर, स्टेंट, इम्प्लांट इत्यादि भी उपकरणों में शामिल हैं। देश में करीब 1500 तरह के उपकरण हैं, जिनमें से 1170 विदेशी कंपनियों के उत्पाद हैं। इस पर नियंत्रण के लिए बैठक में चार बिंदुओं पर सहमति बनी है। जिनमें मेडिकल उपकरणों को ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) के तहत लाकर कीमतों को सस्ता करना है।
स्वेदशी उपकरणों को मिलेगी कर छूट
बैठक में स्वेदशी उपकरणों को बढ़ावा देकर चीन और जापान जैसे विदेशी कंपनियों के महंगे उपकरणों पर ब्रेक लगाने का तरीका खोजा है। चूंकि भारतीय उपकरण कीमत में ज्यादा हैं। इसलिए कमेटी की ओर से सरकार को जल्द ही स्वेदशी उपकरणों को करछूट के दायरे में लाने की सिफारिश की जाएगी। इसके साथ ही कमेटी ने देश में उत्पाद बढ़ाने के लिए उपकरणों की निर्माण सामग्री पर आयात में छूट की पैरवी की है।