एक तरफ जहां जगह-जगह नटवर नागर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने की धूम है वहीं दूसरी तरफ सात बेगुनाह मासूम जेल की अंधेरी काल कोठरी में वक्त काट रहे हैं। इन बच्चों की माताओं के विरुद्ध किसी न किसी मामले में मुकदमा दर्ज है। पांच साल से कम उम्र होने की वजह से उनके साथ रहना इन बच्चों की मजबूरी है। किस्मत के मारे ये कान्हा बेचारे बेगुनाह होते हुए भी खोलने, दौड़ने और बदमाशियां करने की उम्र में जेल की चहारदीवारी के पीछे पहुंच गए। विशेषज्ञ का कहना है कि जेल के डरावने और दमघोटू माहौल में पल-बढ़ रहे इन बच्चों के सामाजिक और मानसिक विकास पर वहां के माहौल का गहरा असर पड़ना तय है। गोरखपुर से दिल्ली की इंडिगो विमान सेवा, सीएम योगी आदित्यनाथ ने दिखाई झंडी यह भी पढ़ें इस समय जिला कारागार में मां के साथ सात बच्चे हैं। इनमें से पांच लड़कियां शिवानी, उर्वशी, खुशबू, अंशिका हैं। जिनकी उम्र तीन से पांच वर्ष हैं। इनके अलावा सात माह की ज्योति भी मां के साथ जेल की चहारदीवारी के पीछे कैद है। दो लड़के, प्रियांश (4) वर्ष और आदित्य (3) भी मां के साथ इस समय जेल में बंद हैं। बच्चों के साथ जेल में बंद महिलाएं पर दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के मुकदमें जेल भेजी गई हैं। उनकी जमानत अर्जी पर सुनवाई चल रही है। –– ADVERTISEMENT –– --- बच्चों का खास ख्याल रखता है जेल प्रशासन : जेल प्रशासन की हर संभव कोशिश रहती है कि मां के साथ जेल में बंद बच्चों पर वहां के माहौल का असर न पड़े। इसके लिए जहां जेल के अंदर ही उनके खेलने और पढ़ने की व्यवस्था की गई है वहीं उनके खाने-पीने पर भी जेल प्रशासन विशेष ध्यान देता है। हर बच्चे को पीने के लिए दूध के साथ ही फल और बढ़ते बच्चों के लिए आवश्यक पौष्टिक खाने का भी इंतजाम जेल की तरफ से किया जाता है। इसके अलावा कई स्वयं सेवी संस्थाएं इनके लिए नियमित रूप से चाकलेट, बिस्किट और खिलौने भेजती रहती हैं। किस्मत के मारे, जेल में बंद ये कान्हा बेचारे यह भी पढ़ें --- जेल के अंदर चलती है नर्सरी पाठशाला : बच्चों के लिए जेल प्रशासन ने नर्सरी पाठशाला की व्यवस्था की गई है। इस पाठशाला में महिला बंदी ही बच्चों को स्वेच्छा से पढ़ाती हैं। मादक पदार्थ तस्करी के आरोप में सजा काट रही थाईलैंड की महिला इस पाठशाला की नियमित शिक्षिका हैं। बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उनके खेलने और खाने का भी वह पूरा ख्याल रखती हैं। --- बच्चों का रखा जाता है पूरा ख्याल : जेल अधीक्षक जेल अधीक्षक डा. रामधनी बच्चों के जेल में होने को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। वह कहते हैं कि जिस उम्र में बच्चों को दादा-दादी की गोद में अठखेलियां करनी चाहिए उस उम्र वे बेचारे जेल में हैं। हमारी हर संभव कोशिश रहती है कि इन बच्चों पर जेल के माहौल का असर न पड़े। उनके खाने, पढ़ने और खेलने की विशेष व्यवस्था की गई है लेकिन जेल तो जेल ही है। इसके माहौल से इन बच्चों को पूरी अछूता रखना आसान नहीं है। --- बच्चों के व्यक्तित्व पर पड़ता है गहरा असर : प्रो. धनंजय दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर धनंजय कुमार बताते हैं कि इन बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व पर जेल में रहने का गहरा असर पड़ना निश्चित है। मनोविज्ञान की भाषा मे इसे मेंटल ट्रामा (मानसिक आघात) कहा जाता है। इसकी वजह से बच्चे का संपूर्ण व्यक्तित्व और मानसिक तथा सामाजिक विकास गंभीर रूप से प्रभावित होता है। सामान्य परिस्थितियों में पलने वाले बच्चों की तुलना में इन बच्चों को जेल से बाहर आने के बाद समाज के साथ तालमेल बिठाने में भी दिक्कत आती है।

किस्मत के मारे, जेल में बंद ये कान्हा बेचारे

एक तरफ जहां जगह-जगह नटवर नागर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने की धूम है वहीं दूसरी तरफ सात बेगुनाह मासूम जेल की अंधेरी काल कोठरी में वक्त काट रहे हैं। इन बच्चों की माताओं के विरुद्ध किसी न किसी मामले में मुकदमा दर्ज है। पांच साल से कम उम्र होने की वजह से उनके साथ रहना इन बच्चों की मजबूरी है। किस्मत के मारे ये कान्हा बेचारे बेगुनाह होते हुए भी खोलने, दौड़ने और बदमाशियां करने की उम्र में जेल की चहारदीवारी के पीछे पहुंच गए। विशेषज्ञ का कहना है कि जेल के डरावने और दमघोटू माहौल में पल-बढ़ रहे इन बच्चों के सामाजिक और मानसिक विकास पर वहां के माहौल का गहरा असर पड़ना तय है।एक तरफ जहां जगह-जगह नटवर नागर श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने की धूम है वहीं दूसरी तरफ सात बेगुनाह मासूम जेल की अंधेरी काल कोठरी में वक्त काट रहे हैं। इन बच्चों की माताओं के विरुद्ध किसी न किसी मामले में मुकदमा दर्ज है। पांच साल से कम उम्र होने की वजह से उनके साथ रहना इन बच्चों की मजबूरी है। किस्मत के मारे ये कान्हा बेचारे बेगुनाह होते हुए भी खोलने, दौड़ने और बदमाशियां करने की उम्र में जेल की चहारदीवारी के पीछे पहुंच गए। विशेषज्ञ का कहना है कि जेल के डरावने और दमघोटू माहौल में पल-बढ़ रहे इन बच्चों के सामाजिक और मानसिक विकास पर वहां के माहौल का गहरा असर पड़ना तय है।    गोरखपुर से दिल्ली की इंडिगो विमान सेवा, सीएम योगी आदित्यनाथ ने दिखाई झंडी यह भी पढ़ें इस समय जिला कारागार में मां के साथ सात बच्चे हैं। इनमें से पांच लड़कियां शिवानी, उर्वशी, खुशबू, अंशिका हैं। जिनकी उम्र तीन से पांच वर्ष हैं। इनके अलावा सात माह की ज्योति भी मां के साथ जेल की चहारदीवारी के पीछे कैद है। दो लड़के, प्रियांश (4) वर्ष और आदित्य (3) भी मां के साथ इस समय जेल में बंद हैं। बच्चों के साथ जेल में बंद महिलाएं पर दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के मुकदमें जेल भेजी गई हैं। उनकी जमानत अर्जी पर सुनवाई चल रही है।  –– ADVERTISEMENT ––    ---  बच्चों का खास ख्याल रखता है जेल प्रशासन : जेल प्रशासन की हर संभव कोशिश रहती है कि मां के साथ जेल में बंद बच्चों पर वहां के माहौल का असर न पड़े। इसके लिए जहां जेल के अंदर ही उनके खेलने और पढ़ने की व्यवस्था की गई है वहीं उनके खाने-पीने पर भी जेल प्रशासन विशेष ध्यान देता है। हर बच्चे को पीने के लिए दूध के साथ ही फल और बढ़ते बच्चों के लिए आवश्यक पौष्टिक खाने का भी इंतजाम जेल की तरफ से किया जाता है। इसके अलावा कई स्वयं सेवी संस्थाएं इनके लिए नियमित रूप से चाकलेट, बिस्किट और खिलौने भेजती रहती हैं।   किस्मत के मारे, जेल में बंद ये कान्हा बेचारे यह भी पढ़ें ---  जेल के अंदर चलती है नर्सरी पाठशाला : बच्चों के लिए जेल प्रशासन ने नर्सरी पाठशाला की व्यवस्था की गई है। इस पाठशाला में महिला बंदी ही बच्चों को स्वेच्छा से पढ़ाती हैं। मादक पदार्थ तस्करी के आरोप में सजा काट रही थाईलैंड की महिला इस पाठशाला की नियमित शिक्षिका हैं। बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उनके खेलने और खाने का भी वह पूरा ख्याल रखती हैं।  ---  बच्चों का रखा जाता है पूरा ख्याल : जेल अधीक्षक  जेल अधीक्षक डा. रामधनी बच्चों के जेल में होने को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। वह कहते हैं कि जिस उम्र में बच्चों को दादा-दादी की गोद में अठखेलियां करनी चाहिए उस उम्र वे बेचारे जेल में हैं। हमारी हर संभव कोशिश रहती है कि इन बच्चों पर जेल के माहौल का असर न पड़े। उनके खाने, पढ़ने और खेलने की विशेष व्यवस्था की गई है लेकिन जेल तो जेल ही है। इसके माहौल से इन बच्चों को पूरी अछूता रखना आसान नहीं है।  ---  बच्चों के व्यक्तित्व पर पड़ता है गहरा असर : प्रो. धनंजय  दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर धनंजय कुमार बताते हैं कि इन बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व पर जेल में रहने का गहरा असर पड़ना निश्चित है। मनोविज्ञान की भाषा मे इसे मेंटल ट्रामा (मानसिक आघात) कहा जाता है। इसकी वजह से बच्चे का संपूर्ण व्यक्तित्व और मानसिक तथा सामाजिक विकास गंभीर रूप से प्रभावित होता है। सामान्य परिस्थितियों में पलने वाले बच्चों की तुलना में इन बच्चों को जेल से बाहर आने के बाद समाज के साथ तालमेल बिठाने में भी दिक्कत आती है।

इस समय जिला कारागार में मां के साथ सात बच्चे हैं। इनमें से पांच लड़कियां शिवानी, उर्वशी, खुशबू, अंशिका हैं। जिनकी उम्र तीन से पांच वर्ष हैं। इनके अलावा सात माह की ज्योति भी मां के साथ जेल की चहारदीवारी के पीछे कैद है। दो लड़के, प्रियांश (4) वर्ष और आदित्य (3) भी मां के साथ इस समय जेल में बंद हैं। बच्चों के साथ जेल में बंद महिलाएं पर दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्या के मुकदमें जेल भेजी गई हैं। उनकी जमानत अर्जी पर सुनवाई चल रही है

बच्चों का खास ख्याल रखता है जेल प्रशासन : जेल प्रशासन की हर संभव कोशिश रहती है कि मां के साथ जेल में बंद बच्चों पर वहां के माहौल का असर न पड़े। इसके लिए जहां जेल के अंदर ही उनके खेलने और पढ़ने की व्यवस्था की गई है वहीं उनके खाने-पीने पर भी जेल प्रशासन विशेष ध्यान देता है। हर बच्चे को पीने के लिए दूध के साथ ही फल और बढ़ते बच्चों के लिए आवश्यक पौष्टिक खाने का भी इंतजाम जेल की तरफ से किया जाता है। इसके अलावा कई स्वयं सेवी संस्थाएं इनके लिए नियमित रूप से चाकलेट, बिस्किट और खिलौने भेजती रहती हैं।

जेल के अंदर चलती है नर्सरी पाठशाला : बच्चों के लिए जेल प्रशासन ने नर्सरी पाठशाला की व्यवस्था की गई है। इस पाठशाला में महिला बंदी ही बच्चों को स्वेच्छा से पढ़ाती हैं। मादक पदार्थ तस्करी के आरोप में सजा काट रही थाईलैंड की महिला इस पाठशाला की नियमित शिक्षिका हैं। बच्चों को पढ़ाने के साथ ही उनके खेलने और खाने का भी वह पूरा ख्याल रखती हैं।

बच्चों का रखा जाता है पूरा ख्याल : जेल अधीक्षक

जेल अधीक्षक डा. रामधनी बच्चों के जेल में होने को दुर्भाग्यपूर्ण मानते हैं। वह कहते हैं कि जिस उम्र में बच्चों को दादा-दादी की गोद में अठखेलियां करनी चाहिए उस उम्र वे बेचारे जेल में हैं। हमारी हर संभव कोशिश रहती है कि इन बच्चों पर जेल के माहौल का असर न पड़े। उनके खाने, पढ़ने और खेलने की विशेष व्यवस्था की गई है लेकिन जेल तो जेल ही है। इसके माहौल से इन बच्चों को पूरी अछूता रखना आसान नहीं है

बच्चों के व्यक्तित्व पर पड़ता है गहरा असर : प्रो. धनंजय

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर धनंजय कुमार बताते हैं कि इन बच्चों के संपूर्ण व्यक्तित्व पर जेल में रहने का गहरा असर पड़ना निश्चित है। मनोविज्ञान की भाषा मे इसे मेंटल ट्रामा (मानसिक आघात) कहा जाता है। इसकी वजह से बच्चे का संपूर्ण व्यक्तित्व और मानसिक तथा सामाजिक विकास गंभीर रूप से प्रभावित होता है। सामान्य परिस्थितियों में पलने वाले बच्चों की तुलना में इन बच्चों को जेल से बाहर आने के बाद समाज के साथ तालमेल बिठाने में भी दिक्कत आती है।

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