महान ज्ञानी चाणक्य ने विश्व को ‘चाणक्य नीति’ जैसा अनमोल खजाना दिया जिसमें राज-काज से लेकर जीवन के प्रत्येक मूल्यों से जुड़ी सैकड़ों नीतियां हैं. विष्णुगुप्त चाणक्य बचपन से ही अन्य बालकों से अलग थे. बाल अवस्था में उन्होंने वेद, पुराण का अध्ययन कर लिया था. पिता शिक्षक थे तो चाणक्य भी शिक्षक बनना चाहते थे. चाणक्य ने तक्षशिला विश्वविद्यालय में राजनीति और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की. उनके जबरदस्त ज्ञान के कारण ही उन्हें कौटिल्य का नाम मिला. चाणक्य ने अपने चाणक्य नीति में पूर्व जन्म के कर्म और उसके फल को लेकर दूसरे अध्याय में एक श्लोक लिखा है. आइए जानते हैं चाणक्य में इसमें क्या बताया है…
भोज्यं भोजनशक्तिश्च रतिशक्तिर्वराङ्गना ।
विभवो दानशक्तिश्च नाल्पस्य तपसः फलम् ॥
चाणक्य नीति के दूसरे अध्याय में वर्णित इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि व्यक्ति को 5 चीजें पिछले जन्म पुण्यों के आधार पर मिलती हैं. इसमें सबसे पहला स्थान है अच्छे भोजन का. चाणक्य के मुताबिक वो लोग किस्मत वाले होते हैं जिन्हें अच्छा खाना मिल पाता है. यानी आपका दिल जिस चीज को खाने का करे और वो चीज मिल जाए तो उससे बड़ा सुख क्या होगा.
उत्तम खाना मिल जाना ही सुख नहीं है, चाणक्य के मुताबिक अच्छे भोजन को पचा पाने की शक्ति का होना भी आवश्यक है जिसकी क्षमता सभी में नहीं होती. यह शक्ति उन्हीं लोगों को पास होती है जिन्होंने पूर्व के जन्मों में अच्छे कर्म किए होते हैं. सभी जानते हैं कि ज्यादा भोजन खतरनाक होता है. इसलिए भोजन को पचा पाने की शक्ति हो तो आनंद और बढ़ जाता है.
इस श्लोक में चाणक्य सुंदर और गुणवान स्त्री का भी जिक्र करते हैं. वो कहते हैं कि किस्मत वालों को ही सर्व गुण सम्पन्न और समझदार पत्नी मिलती है. वर्तमान संदर्भ में गुणवान पत्नी का मिलना पुण्य के फल से कम नहीं है. अपने जीवनसाथी का आदर करने वाले व्यक्ति को ही ऐसी कन्या प्राप्त होती है.
चाणक्य कहते हैं कि अच्छे काम शक्ति वाले मनुष्य में भाग्यशाली होते हैं. आचार्य कहते हैं कि व्यक्ति काम के वश में नहीं होना चाहिए. काम के वश में रहने वाले व्यक्ति का विनाश जल्द हो जाता है.
धन के सही इस्तेमाल की जानकारी का होना भी खुशहाल जीवन के अत्यंत आवश्यक माना गया है. चाणक्य कहते हैं कि धनवान होने से ज्यादा जरूरी धन के इस्तेमाल की जानकारी होना है. यह गुण भी कर्मों के पुण्यों से ही प्राप्त होता है.
दान देने वाला स्वभाव भी बेहद कम लोगों में होता है और यह भी किसी पुण्य के फल से कम नहीं है. क्योंकि धरती पर धनवान लोगों की कमी नहीं है फिर भी भंडार भरा होने के बाद भी व्यक्ति दान के लिए हाथ आगे नहीं बढ़ा पाता. वहीं, गरीब व्यक्ति भी अपने गुजारे के धन में से जरूरतमंद को मदद कर देता है. चाणक्य के मुताबिक ये गुण भी पूर्वजन्म के कर्मों से मिलता है.