भारत और नेपाल के बीच बाउंड्री विवाद को सुलझाने के लिए नेपाल ने बातचीत पर जोर दिया है. नेपाल ने कहा है कि भारत और खुद नेपाल की ओर से सिर्फ एकपक्षीय तरीके से देश का नक्शा जारी करने से समस्या का समाधान नहीं हो जाएगा. नक्शे से जुड़ी समस्या का समाधान बातचीत के जरिए ही हो पाएगा.
नेपाल सरकार के उच्च सूत्रों ने इंडिया टुडे को बताया कि हालांकि दोनों देशों ने अपनी अपनी सीमाओं के मानचित्र प्रकाशित किए हैं, लेकिन अंतरराष्ट्रीय सीमाओं का निर्धारण आपसी सहमति से होता है, भले ही नक्शे में जो कुछ भी दिखाया गया हो, या फिर जमीन पर वास्तविक कब्जा कुछ भी हो. इससे जुड़े विवादों का निपटारा आपसी संबंधों और समझौतों के जरिए किया जाता है.
इस अधिकारी ने कहा कि भारत और नेपाल द्वारा एकपक्षीय रूप से नक्शे का प्रकाशन समस्या को खत्म नहीं कर देता है. दोनों पक्षों के बीच बातचीत की पैरवी करते हुए काठमांडू में इस सूत्र ने कहा कि नेपाल ने दोनों देशों के बीच विदेश सचिव स्तर की वार्ता के लिए तारीखें दी थीं लेकिन भारत की ओर से इसका कोई जवाब नहीं आया.
बता दें कि पिछले साल 2 नवंबर को जम्मू-कश्मीर की स्थिति में बदलाव के बाद भारत ने जब अपना नक्शा अपडेट किया था तो नये नक्शे में कालापानी की स्थिति को लेकर नेपाल ने आपत्ति जताई थी. 8 मई 2020 को जब रक्षा मंत्री ने धारचूला को लिपुलेख को जोड़ने वाली सड़क का उद्घाटन किया तो भी नेपाल ने इस पर आपत्ति जताई थी. इसे कैलाश मानसरोवर यात्रा का नया रूट भी कहा जाता है.
एक नेपाली अधिकारी ने कहा कि बॉर्डर से जुड़े मुद्दे संवेदनशील होते हैं, भारत द्वारा मैप जारी करने के बाद ये और भी संवेदनशील हो गया, इसके बाद नेपाल में जनता और वहां का विपक्ष इसे प्रमुखता से उठाने लगा.
भारत का इस पर पक्ष है कि उसकी ओर से जो भी सड़क निर्माण या आधारभूत निर्माण किया जा रहा है वो भारतीय सीमा के अंदर है. भारत के अधिकारी सवाल उठाते हैं कि अगर ये विवादित इलाके थे तो नेपाल ने इतने सालों से इन मुद्दों को क्यों नहीं उठाया.
नेपाल की संसद में नये नक्शे को लेकर एक बिल भी पेश किया गया है. नेपाल के अधिकारी ने कहा कि हमारे पास पुराने मानचित्र और दस्तावेज हैं, भारत के पास भी दस्तावेज हैं. दोनों देश के अधिकारियों को बैठकर सीधी बात करनी चाहिए. भारत और नेपाल के बीच 2014 से लेकर 2020 तक बॉर्डर के मुद्दे पर अबतक कोई बातचीत नहीं हुई है.