संवेदनशील होना अच्छी है बात मगर क्या आपको मालूम है हद से ज्यादा संवेदनशीलता जिंदगी को कौन सी मुश्किलों में डाल सकती है? भावनाएं और संवेदनाओं का संबंध इंसानों के साथ बहुत गहरा है. जानवरों से इंसान को अलग करने वाली भावनाएं और संवेदनाएं ही होती हैं. अगर ये ना हों तो इंसान जानवरों जैसा है. रिश्तों की बुनियाद में भी ये एक अहम किरदार अदा करता है. खून के रिश्ते में आकर्षण और लगाव की मुख्य वजह त्याग, बलिदान की भावना ही प्रमुख होती है जिसमें अपनी खुशी से ज्यादा दूसरों की खुशी को प्राथमिकता दी जाती है.
आम तौर पर संवेदनशील लोगों की पहचान करना पेचीदा काम है. दरअसल संवेदनशील लोग हद से ज्यादा जोशीले, परेशानी का शिकार और खुद को थका पाते हैं. उनके मन में जब नया विचार आता है तब जोशीले बन जाते हैं. मगर नतीजे उम्मीद के विपरीत पाकर बेचैनी और दिमागी उलझन का शिकार हो जाते हैं. ऐसा होने की सबसे बड़ी वजह उनका हद से ज्यादा भावनात्मक और कल्पनाशील दुनिया का शौकीन होना होता है.
मनोविज्ञान के मुताबितक संवेदशनील लोगों में Sensory processing sensitivity (SPS) पाई जाती है. संवेदनशील शख्स अपने माहौल में बदलाव को कम ही बर्दाश्त करता है. स्वाद, म्यूजिक, सुगंध, रवैया और मौसमी तब्दीली को बारीक नजर से देखता है और इस तरह के बदलाव को पसंद नहीं करता. इसी के साथ संवेदनशील लोग बहुत दयालु होते हैं और किसी दूसरे की परेशानी पर खुद को उसकी जगह रखकर सोचते हैं.
एक शोध में पता चला है कि दुनिया की 15-20 फीसद आबादी में SPS पाई जाती है. ये ना सिर्फ इंसानों में मौजूद है बल्कि दूसरे प्राणियों की सौ से ज्यादा प्रजातियों में भी पाई जाती है. संवेदनशील होना अच्छी बात है मगर हद से ज्यादा संवेदनशीलता जिंदगी को मुश्किल बना देती. हर बात को दिल से लगा लेना, कई-कई दिनों तक एक ही बात को लगातार सोचते रहना ठीक नहीं. याद रखिए जिंदगी आगे बढ़ने का नाम है. अच्छे-बुरे हालात आते रहेंगे. मगर एक मोड़ को आखिरी मोड़ समझ लेना मूर्खता के सिवा कुछ नहीं.