हल्द्वानी शहर में एक नाला ऐसा भी है, जो नाम से ही अपनी प्रवृति बयां कर देता है। ये रकसिया नाला है। राक्षस नाम से पड़े रकसिया नाम वाला ये नाला सर्दी से गर्मी तक शांत रहता है और लोगों का कूड़ाघर बन जाता है। कई जिंदगियां लील चुका नाला बरसात में भी कुछ ही दिनों तक अपना रूप दिखाता है। लेकिन उसमें भी काफी तबाही मचा जाता है। नाले के रौद्र रूप की असल वजह भी लोग ही हैं। दमवाढूंगा में नाले की चौड़ायी 80 से 100 फीट तक है। चंबल पुल पार करते ही लोगों ने अतिक्रमण कर नाले को संकरा कर दिया है। बिठोरिया नंबर एक में कहीं-कहीं नाला छह से आठ फीट तक रह गया है। कई पुलिया काफी नींची हैं। पुलिया के नींचे नाला पार के लोगों की पेयजल लाइनों का जाल बिछा है। नाले के उफान पर आते ही नींची पुलिया व पाइपों से टकराकर पानी व मलबा सड़क, कालोनियों व घरों में घुसकर नुकसान पहुंचा देता है।
प्रेमपुर लोश्ज्ञानी गांव से आगे नाले की निकासी की व्यवस्था तक नहीं है आैर खेतों व कालोनियों में घुसता है। वहीं सरकारी रिकार्ड बताते हैं कि वर्ष 2010 से लेकर 2012 तक नाले में दमुवाढूंगा से लेकर लालडांठ तक आपदा प्रबंधन के 2.64 करोड़ रुपये से सुरक्षा दीवारें बनायी गयी। इसके बावजूद नाले के गुजरने वाली पुलिया का न तो ऊपर उठाया गया और न ही इससे गुजरने वाले पाइपों के जाल को हटाने की कार्रवाई की गयी। इसके बाद वर्ष 2015 से 2018 तक नाबार्ड के तहत 8.19 करोड़ रुपये खर्च कर लालडांठ से प्रेमपुर लोश्ज्ञानी तक सुरक्षा दीवार बनाने आदि काम हुए। उस समय भी नाले से प्रेमपुर लोश्ज्ञानी गांव से आगे निकासी की सुध नहीं ली गयी। प्रेमपुर लोश्ज्ञानी में नाला बंद होने से पानी व मलबा खेतों व कालोनियों में घुस रहा है। एक सप्ताह पहले नाले के तबाही मचाने पर प्रशासन की नींद टूटी और निरीक्षण हुआ। अब तक प्रशासन नाले से मचने वाली तबाही से बचाने के लिए स्थायी समाधान नहीं खोज पाया है। वहीं आसमान पर बादल घिरते ही आठ किमी तक नाले के आसपास कालानियों में रहने वाले लोगों की सांसें थम जा रही हैं।
इन कालोनियों की पुलिया उठाना बेहद जरूरी
पार्वती इन्क्लेव, रीवा इन्क्लेव, वंदना विहार, सिल्वर स्टोन कालोनी, बीके पुरम, इश्वरी इन्क्लेव, जय गंगा इंद्रापुरम, आकाश इन्क्लेव, कृष्णा विहार, गोविंद पुरम, सरस्वती विहार, कोहली कालोनी।
100 फीट का नाला कई जगह आठ फीट
जंगलों से आने वाले नाले की लंबाई दमुवाढूंगा में करीब 100 फीट है। चम्बल पुल से ही लोगों ने नाले के दोनों ओर अतिक्रमण कर दिया है। यहां तक कि नाले की दीवारों के ऊपर तक मकान बना दिए गए हैं। लोगों के अतिक्रमण की वजह से ये नाला कई स्थानों पर मात्र आठ से 10 फीट लंबा रह गया है। यही नहींनाले में ही लोग कूड़ा करकट फेंकते हैं। यही नहीं घर के ड्रेनेज पाइप के अलावा लोगों ने शौचालय के पाइप तक नाले में छोड़ रखे हैं। कुछ लोगों ने तो सीवर पिट तक नाले में बनाए हुए हैं।
सिंचाई नहर भी रही बहाव की रोधक
चम्बल पुल के पास सिंचाई नहर नाले के ऊपर से गुजरती है। इस नहर का पानी कालाढूंगी रोड पर लामाचौड़ तक सिंचाई के लिए जाता है। नहर के नींचे पानी निकलने के लिए काफी कम जगह रह गयी है। नहर के रोधक बनने से पानी आसपास की जमीनों को काटता जा रहा है।
बहाव मोड़ने के लिए लांचिंग एपरन बनाने की जरूरत
लालडांठ तक नाले में कई स्थानों पर घुमाव है। इस स्थानों पर नाले का बहाव एक ओर ही बहता है और दूसरी ओर मलबे के ढेर लगकर टीलेनुमा बन गए हैं। नाला एक ही ओर बहने से भी उफान पर आकर कालोनियों में घुस रहा है। विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर नाले के बहाव को डाइवर्ट करने के लिए लिंचिंग एपरन बनाए जाएं तो नाला एक ओर नहीं बहेगा।
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