अब कानपुर के ई-रिक्शा उद्योग ने चीन को एक और आर्थिक झटका दिया है। आत्मनिर्भर भारत के तहत ई-रिक्शा के लिए अब स्वदेसी बैट्रियों का इस्तेमाल शुरू हो गया है। पहले इसमें चीन से आयातित लीथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल किया जाता था, जो महंगा होेने के साथ घाटे का सौदा भी था। लाॅक डाउन के चलते चीन से यह बैटरी न आने पर रिक्शा उत्पादक लेड एसिड बैटरी पर आत्मनिर्भर हो गए हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ यह है कि इस बैटरी से बनने वाले रिक्शे की कीमत एक लाख 30 हजार के करीब आती है जबकि साल-डेढ़ साल बाद बैटरी बदलने पर 40 फीसद पैसा वापस भी मिल जाता है।
तीन से चार गुना अधिक थी बैट्री की कीमत
लाॅकडाउन के पहले ई-रिक्शे में लीथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल शुरू हो गया था। यह बैटरी महंगी होने के कारण ई-रिक्शे की कीमत भी अधिक होती थी। एक रिक्शे में 48 वोल्ट की सिंगल बैटरी लगाई जाती थी जिसकी कीमत तीन से चार गुना अधिक थी। रिक्शे में 75 से 80 हजार रूपये की बैटरी लगाई जाती थी। वहीं दूसरी ओर अब चार लेड एसिड बैटरी जोड़कर 48 वोल्ट की बैटरी तैयार करके उसे ई-रिक्शा में लगाया जा रहा है जिसका खर्च महज 25 हजार रूपये आता है। यह आसानी से सुलभ होने के साथ उद्यमियों के बजट में भी समा रही है। इसकी खासियत यह है पुरानी बैटरी बदलाने के दौरान उसे जमा करने पर 10 हजार रूपये वापस मिल जाते हैं। इसके विपरीत लीथियम आयन में कोई वापसी नहीं होती थी। ऊपर से रिक्शे की कीमत 75 हजार रूपये बढ़कर दो लाख तक पहुंच जाती थी।
ई-रिक्शा उत्पादन 50 फीसद पहुंचा
ई-रिक्शा उद्यमी मनीष गुप्ता ने बताया कि लाॅक डाउन के बाद से यह उद्योग पूरी तरह बंद हो गया था। दो महीने से आवाजाही शुरू होेने पर ई-रिक्शे का कारोबार फिर चलने लगा है। धीरे धीरे इसका उत्पादन 50 फीसद तक पहुंच गया है। उद्यमी संदीप पुरी बताते हैं कि लाॅक डाउन के पहले प्रतिमाह पांच सौ ई-रिक्शे बनाते थे जबकि अब दो सौ से ढाई सौ बन रहे हैं। मेक इन इंडिया पर फोकस किया जाए तो यह उद्योग बढ़ेगा। ई-रिक्शा उद्यमी शशांक सिंह ने बताया कि अभी कई लोग पब्लिक ट्रांसपोर्ट को नजरअंदाज कर रहे हैं इसलिए सौ फीसद क्षमता के साथ उत्पादन में अभी वक्त लगेगा। हां यह जरूर है कि ई-रिक्शा मैन्यूफैक्चरिंग में चीन से आने वाली लीथियम आयन की बैटरी का प्रयोग अब नहीं हो रहा है।