जीवन में कुछ मंत्र ऐसे होते हैं जिनको याद रखने से हमेशा काम आते हैं। इन्हीं मंत्रों में से एक मंत्र है कि अपना निर्णय स्वयं ले। कुछ मंत्र ऐसे हो जाते हैं कि कभी-कभी हमें स्वयं ही लेनी चाहिए क्योंकि अगर हम किसी पर आधारित हो जाएंगे तो हम अपना जीवन स्वयं जीने में असमर्थ रहेंगे और सामने वाला कठपुतली के नाते हमें अपने इशारों में नचाता रहेगा।
कुछ लोग दूसरों पर आश्रित रहते हैं और उनका संचालक दूसरे ही करते हैं। जिससे आप के निर्णय को कुछ लोग अच्छा कहते हैं तो कुछ लोग बुरा कहते हैं । आप इन्हीं अच्छे बुरे के चक्कर में जो आपका स्वता निर्णय है वह आप नही ले पाते। बल्कि सच्चाई तो यह रहती है कि आपको दूसरों के हिसाब से चलने के बजाय खुद निर्णय लेने चाहिए और दूसरे आपके निर्णयों में ज्यादातर ना दें।
इससे जुड़ी हुई एक कहानी आपको सुनाते हैं।
जब भगवान शिव का पार्वती माता से विवाह होने की तैयारियां शुरू हो चुकी थी और तब शिवजीत बारात लेकर माता पार्वती के द्वार पहुंचे थे। शिव जी के साथ उनके वाहन नंदी और सभी जीव जंतु के साथी स्वयं भोलेनाथ भस्म धारण की विवाह में पहुंचे थे। अघोरी के साथ ही बैरागी रूप धारण किए भगवान शिव जब माता पार्वती के द्वार पहुंचे तो उनका स्वरूप बड़ा ही अनूठा था। गले में सर्प की माला पहने भोलेनाथ हिमालय राजा के द्वार पर पहुंचे। माता नैना देवी शिवजी की आरती उतारने के लिए द्वार पर प्रतीक्षा कर रही थी। माता नैना देवी ने जैसे ही भगवान शिव का रूप देखा वो डर गई और उनके हाथ से आरती की थाली गिर गई। आप बारात में जितने भी लोग थे उन्हें लगा कि अब तो अपशकुन हो गया।
फिर क्या था अपशगुन की बात सुनते ही मैनादेवी भगवान शिव का अपमान करने लगी। नैना देवी ने कहा अगर मुझे यह ज्ञात होता कि मेरी बेटी का दूल्हा यह है तो मैं इस विवाह के लिए कभी तैयार न होती। मैंने तो नारद जी की बात पर आकर इस रिश्ते के लिए हां कर दी थी। तम्मा तम्मा ना अपनी पुत्री पार्वती का विवाह करने के लिए भगवान शिव से तैयार नहीं थी यहां तक कि उन्होंने अपने प्राण त्यागने की बात कह दी।
भगवान शिव के भक्त गण सोचे कि अब तो विवाह नहीं होगा और भगवान शिव को क्रोध आ जाएगा।उनके किसी ने नहीं भगवान से उससे पूछा कि आपको क्रोध क्यों नहीं आ रहा है, तब भगवान शिव बड़े ही सौम्यता के साथ जवाब देते हुए कहा कि मैं अपना घर बनाने जा रहा हूं इसमें अहंकार कैसा। भगवान शिव ने कहा कि माता मीणा स्वतंत्र है यह कुछ भी कह सकती है मेरे बारे में जो सोचना है वह सोचे और मैं जो हूं वह हूं।
ऐसे ही बातें चल रही थी तब तक माता पार्वती और शिव जी का विवाह संपन्न हो गया और नारद जी ने माता मैना को इस बात की जानकारी दी कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ।
इस कहानी का उद्देश्य यह है कि आप अपने निर्णय स्वयं ले कोई कुछ भी कहता रहे उसका विचार है वह किस सोच है आप जैसे हैं वैसे ही रहें अपना स्वरूप बदलने की जरूरत नहीं और ना ही किसी पर निर्भर होने की जरूरत है।
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