ऑर्गेनिक खेती: अच्छी सेहत के साथ रखे जेब का भी ध्यान

आजकल के मिलावट वाले समय में लोग नेचुरल और आर्गेनिक चीजें खोज रहें हैं. ऑर्गेनिक ब्यूटी प्रोडक्ट्स से लेकर ऑर्गेनिक फूड तक हमारी पहली पसंद ओरिजिनल चीजें बन रही हैं. और हो भी क्यों न आज कोरोना काल में हम अपनी इम्युनिटी को बूस्ट करना हो तो आर्गेनिक चीजें ही खानी चाहिए.

क्या है जैविक खेती?

जैविक खेती पुरानी विधि से की जाने वाली खेती है, जो भूमि के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखती है, पर्यावरण की शुद्धता को बनाए रखती है, मिट्टी की जल धारण क्षमता को बढ़ाती है, इसमें केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है और कम लागत में गुणवत्तापूर्ण पैदावार होती है. जैविक खेती में रासायनिक उर्वरको, रासायनिक कीटनाशकों तथा खरपतवारनाशकों की बजाय गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद, हरी खाद, वैक्टीरिया कल्चर, जैविक खाद और जैविक कीटनाशकों इत्यादि से खेती की जाती है.

जैविक खेती के फायदे

जैविक खेती से न केवल भूमि की उर्वरक शक्ति बनी रहती है, बल्कि उसमें वृद्धि भी होती है. इस पद्धति से पर्यावरण प्रदूषण रहित होता है. जैविक खेती में कम पानी की आवश्यकता होती है जैव खेती पानी का संरक्ष्ण करती है. इस खेती से भूमि की गुणवत्ता बनी रहती है या सुधार होता रहता है. यह किसान के पशुधन के लिए भी बहुत महत्व रखती है और अन्य जीवों के लिए भी. फसल अवशेषों को नष्ट करने की आवश्यकता नही होती है. उत्तम गुणवत्ता की पैदावार का होना. इससे से लोगों की सेहत ठीक रहती हैं. कृषि में सहायक जीव न केवल सुरक्षित होंगे बल्कि उनमें बढ़ोतरी भी होगी. इसमें कम लगती आती है और मुनाफा ज्यादा होता है.

जैविक खाद कैसे तैयार करें

भारत में पहले से ही गोबर की खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद और जैविक खाद का प्रयोग विभिन्न फसलों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किया जाता रहा है. जैविक खाद बनाने के लिए पौधों के अवशेष, गोबर और जानवरों का बचा हुआ चारा आदि सभी वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए. जैविक खाद बनाने के लिए 10 फुट लम्बा, 4 फुट चौड़ा और 3 फुट गहरा गड्ढा करना चाहिए. सभी जैविक पदार्थो को मिलाकर गड्ढे में भरना चाहिए और उपयुक्त पानी डाल देना चाहिए. गड्ढे में पदार्थों को 30 दिन बाद अच्छी तरह पलटना चाहिए और उचित मात्रा में नमी रखनी चाहिए. यदि नमी कम हो तो पलटते समय पानी डाला जा सकता है. पलटने की क्रिया से जैविक पदार्थ जल्दी सड़ते है, और खाद में पोषक तत्वों की मात्रा बढ़ती है. इस तरह तीन महीनें में जैविक खाद बन कर तैयार हो जाती हैं.

ऑर्गेनिक खेती में कितनी लागत आती है?

ऑर्गेनिक सब्जियों या फिर दालों को उगाने में 40-60 हजार रुपये तक की लागत आती है. हालांकि, मानसून में ज्यादा बारिश होने पर सब्जियां खराब हो जाती हैं. इन्हें बचाने के लिए अलग से नए काम करने पड़ते हैं. हालांकि, बाजार में इन्हें बेचने पर हर महीने 2-3 लाख रुपये तक की कमाई हो जाती है.

लागत कम करने के लिए उठाते हैं ये कदम 

आपको जैविक तरीके से सब्जी तैयार करने के लिए बैक्टीरिया बनाने हैं, जिससे पौधों को उसका भोजन पर्याप्त मात्रा में मिल सके. यहीं बैक्टीरिया पौधों को उनका पोषक तत्व देता है. जैविक खेती में सबसे बड़ा काम यही होता, बैक्टीरिया को बनाना. इस बैक्टीरिया से पौधों को नाइट्रोजन भी प्राप्त होता है और नाइट्रोजन के लिए कोई दूसरी दवा भी नही डालनी पड़ती है.  जैविक खेती करने से लगभग 80 फीसदी लागत कम हो जाती है. इसमें गोबर, गौमूत्र सब घर से ही मिल जाता है, जो कि हमारी काफी बचत करता है.

By- कविता सक्सेना श्रीवास्तव 

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