स्वर्ग और नर्क ये सब आपको किताबी बातें या फिर कोई कहानी लगती होगी. लेकिन ये बात सच है. हमारे धार्मिक पुराणों में स्वर्ग लोक और पाताल लोक का वर्णन मिलता है. ऐसा माना जाता है की स्वर्गलोक बहुत ही अच्छा है और वहीं देवता निवास करते हैं. इसके ठीक विपरीत नर्कलोक है और वहां राक्षसों का निवास होता है.
इनके बीच में पृथ्वी है, जहां मनुष्य रहते हैं. आप सभी ने इसकी कल्पना तो जरूर की होगी. स्वर्ग लोक कैसा दिखता है, यह बता पाना तो मुश्किल है. मगर पाताल लोक कैसा होता है, यह हम आपको बता भी सकतें हैं और दिखा भी सकते हैं.

दरअसल भारत में एक ऐसी जगह है जो पाताल लोक कहा जाता है. जगह का नाम भी इससे बिलकुल मिलता जुलता है. इस स्थान का नाम ‘पातालकोट’ है. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले से लगभग 80 किलोमीटर की दूरी पर आपको यह स्थान मिल जाएगा. सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों की गोद में बसा यह स्थान प्रकृति का अजूबा है. जमीन से 1700 फुट की गहराई में बसे इस क्षेत्र को पातालकोट यूं ही नहीं कहा जाता है. इससे जुड़े कई रहस्य, पौराणिक कथाएं और तथ्य हैं. चलिए जानते हैं पातालकोट से जुड़ी रहस्यमयी और रोचक बातों के बारे में-
ऐसा दिखता है पातालकोट-
चारों ओर से पहाड़ों और जंगलों से घिरे पातालकोट में 12 गांव हैं. यहां रहने वालों की कुल संख्या तो नहीं पता, मगर लगभग 1500 से 2000 के बीच लोग इस स्थान पर रहते हैं. इस विहंगम घाटी में रहने वाले लोग गोंड और भारिया जनजाति के आदिवासी हैं.पातालकोट के कुछ गांव ऐसे भी हैं जहां कभी धूप नहीं आती है. कुछ गांव हमेशा अंधेरे में ही डूबे रहते हैं. वहीं जिन गांव में धूप आती भी है तो दोपहर के समय वहां केवल 2 घंटे के लिए ही उजाला होता है.
पातालकोट से जुड़ी कथाएं-
रामायण काल में जब राम-रावण युद्ध हो रहा था तब अपने आराध्य भगवान शिव की आराधना के लिए रावण का पुत्र मेघनाथ इसी स्थान पर आया था. इस बात का पता जब हनुमान जी को चला तो वह अपनी वानर सेना के साथ वहां पहुंच गए थे और मेघनाथ की पूजा को भंग कर दिया था. इसलिए यहां रहने वाले आदिवासी लोग भगवान शिव और मेघनाथ की पूजा भी करते हैं और इन दोनों को ही अपना आराध्य मानते हैं.
पातालकोट में रहने वाले लोग-
ऐसा कहा जाता है कि पातालकोट में रहने वाले लोग पहले बिना वस्त्रों के रहा करते थे और जंगली जानवरों को मार कर भोजन करते थे, मगर अब इनकी जीवनशैली में धीरे-धीरे विकास हो रहा है. शहरी लोगों के संपर्क में आने के बाद से यह लोग खेती करने लगे हैं और कपड़े-गहने भी पहनने लगे हैं. पातालकोट के किसी भी गांव में बिजली नहीं है. हालांकि, इस क्षेत्र में बिजली लाने का काम चल रहा है, मगर यह आसान नहीं है क्योंकि जमीनी तल से यह क्षेत्र काफी नीचे है और यहां जाने का रास्ता भी दुर्गम है.पातालकोट में रहने वाले लोग अभी भी मिट्टी और घास-फूस के घर बना कर जीवन यापन कर रहे हैं. इस क्षेत्र में दुर्लभ जड़ी बूटियां पाई जाती हैं. यहां के लोग आम के पेड़ भी खूब उगाते हैं। महुआ की सब्जी और आम की गुठली की रोटी यहां के लोगों का मुख्य भोजन है.
कैसे पहुंचे पातालकोट-
पातालकोट अब एक दार्शनिक स्थल बन चुका है. पातालकोट में मौजूद कुछ गांव ऐसे है जो बाहरी दुनिया के लोगों का बांह फैला कर स्वागत करते हैं. पातालकोट के दर्शनीय स्थलो में, रातेड, कारेआम, नचमटीपुर, दूधी तथा गायनी नदी का उद्गम स्थल और राजाखोह प्रमुख है. यहां पहुंचने के लिए 5 अलग-अलग रास्ते हैं. मगर आप जिस रास्ते से भी नीचे जाएंगे वहां से आपको हजारों सीढ़ीयां नीचे उतरना होगा. साथ ही कुछ ऐसे स्थान भी आपको मिलेंगे जहां आपको पगडंडियों पर चलना होगा.
इस स्थान तक पहुंचने का मार्ग-
अगर आप पातालकोट हवाई मार्ग से पहुंचना चाहते हैं तो आपको नागपुर तक फ्लाइट लेनी होगी फिर आप सड़क मार्ग से यहां तक पहुंच सकते हैं. वहीं रेल मार्ग से यहां आने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन छिंदवाड़ा है. सर्दियों या मानसून का मौसम यहां के लिए बेस्ट है. बारिश के मौसम में यह घाटी बादलों से ढक जाती है, इस नजारे को देखना बेहद मनमोहक होता है.
By- कविता सक्सेना श्रीवास्तव