चरणामृत को सेहतमंद मानते हैं वैज्ञानिक, जानें चरणामृत व पंचामृत में अंतर

घर में कोई भी पूजा या धार्मिक अनुष्‍ठान हो उसके बाद चरणामृत या पंचामृत जरूर दिया जाता है। हममें से बहुत सारे लोगों को इन दोनों के बारे में जानकारी नहीं है। कौन सा पंचामृत है और कौन सा चरणामृत है। दोनों में से कौन सा कब देने का विधान है और तो और यह कब और किस विधि से बनाए जाते हैं। बहुत से लोग जानते होंगे कि सत्‍यनारायण की कथा के बाद पंचामृत दिया जाता है। मगर इसके बावजूद वह पंचामृत और चरणामृत का भेद नहीं जानते हैं।

हिंदू धर्म में चरणामृत और पंचामृत का अलग-अलग महत्‍व है। पूजा और अनुष्‍ठान के बाद दोनों ही वितरित किए जाते हैं, मगर कौन सा कब दिया जाता है इसका विधान अलग है। आइए जानते हैं इनके बारे में

पांच तत्‍वों के मेल से बनता है पंचामृत

जैसा कि नाम से ही साफ है पंचामृत में पांच चीजों का समावेश होता है। पंचामृत यानी पांच अमृत, जैसे दूध, दही, घी, शक्‍कर और शहद को मिलाकर बनाया जाता है। इसका सेवन करने से शरीर ताकतवर बनता है और बीमारियों का खतरा कम रहता है। मगर इसका ज्‍यादा मात्रा में सेवन नहीं करना चाहिए, अन्‍यथा यह उल्‍टा असर भी कर सकता है। आपने देखा होगा कि पंचामृत से भगवान सत्‍यनारायण को स्‍नान करवाया जाता है। पंचामृत की पांच चीजों को अपने स्‍नान में शामिल करने से त्‍वचा में चमक आ जाती है।

चरणामृत में होते हैं औषधीय गुण

चरणामृत का धार्मिक महत्‍व तो है ही, वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण से भी इसकी बहुत अहमियत है। चरणामृत तांबे के लोटे में तुलसीदल डालकर रखा जाता है। लिहाजा इसमें तांबे और तुलसी दोनों के औषधीय गुण आ जाते हैं। आयुर्वेद के मुताबिक तांबे में कई बीमारियों से लड़ने की ताकत होती है। इसी तरह तुलसी के पत्‍ते में भी कई चिकित्‍सकीय गुण होते हैं। तुलसी कीटाणुनाक मानी जाती है। इसके अलावा चरणामृत में केसर, तिल और संघटित शालग्राम होते हैं, जो आंख और शरीर दानों की ताकत बढ़ाते हैं।

सभी पापों का नाश करता है चरणामृत

चरणामृत का मतलब होता है भगवान के चरणों का अमृत। धर्म शास्‍त्रों में कहा गया है कि चरणामृत के सेवन से सभी पापों का नाश हो जाता है। आरती के बाद चरणामृत विशेष रूप से ग्रहण करना चाहिए ताकि सभी दुखों और पापों का नाश हो और सकारात्‍मक ऊर्जा का संचार हो।

अपराजिता श्रीवास्‍तव

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