ओलंपिक की बात जब भी सामने आती है तो हम खिलाड़ियों को लेकर ही चर्चा करते हैं। उनके संघर्ष और विजय बनने के सफर पर बात करते हैं। हालांकि आज हम आपको एक अनोखी बात बताने जा रहे हैं। आज हम बात करेंगे ओलंपिक में शामिल होने वाले घोड़ों की। दरअसल ओलंंपिक में शामिल होने वाले घोड़ों की लाइफ काफी लग्जरी होती है। उनके पासपोर्ट बनते हैं और वे स्पेशल फ्लाइटों से एक देश से दूसरे देश जाते हैं। तो चलिए जानते हैं ओलंपिक के घोड़ों की लग्जरी लाइफ के बारे में।
साल 1900 में ओलंपिक का हिस्सा बना था घुड़सवारी
घुड़सवारी आज का नहीं बल्कि प्राचीन समय का खेल है जिसे लोग आज भी करते हैं। घुड़सवारी राजा–महाराजाओं का शौक हुआ करती थी और युद्ध में घोड़ों की अहम भूमिका हुआ करती थी। हालांकि आज के दौर में घुड़सवारी बस एक खेल तक ही सीमित रह गया है। बता दें कि साल 1900 में घुड़सवारी को ओलंपिक खेलों में पहली बार शामिल किया गया था।
1952 से सिर्फ अधिकारियों को ही घुड़सवारी की थी छूट
वहीं साल 1912 में दोबारा से इस खेल को ओलंपिक में जोड़ा गया। साल 1952 के बाद से घुड़सवारी करने की अनुमति सिर्फ अधिकारियों को ही होती थी। खास बात ये है कि भारत की ओर से दो खिलाड़ियों ने ओलंपिक की घुड़सवारी में हिस्सा लिया था। वहीं इस साल के ओलंपिक में करीब 20 साल बाद फौआद मिर्जा बतौर घुड़सवार देश का प्रतिनिधित्व करेंगे।
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ओलंपिक के घोड़े रहते हैं लग्जरी में
इंसानों की तरह ही ओलंपिक का हिस्सा बनने वाले घोड़ों का पासपोर्ट बनता है। उनकी एक अलग पहचान होती है। इसके अवाला बिना बोर्डिंग पास वो सफर भी नहीं कर सकते हैं। बोर्डिंग से पहले घोड़े के सारे कागजात चेक किए जाते हैं, जिनका पूरा होना अनिवार्य है। बता दें कि एयरपोर्ट पर वेटनरी डाॅक्टर घोड़ों का चेकअप करते हैं। चेकअप में स्वास्थ्य ठीक न हो तो इसके बाद घोड़े को उसके स्टाल में रखा जाता है। जब घोड़ा स्वस्थ महसूस करता है तभी उसे प्लेन में चढ़ाया जाता है।
ऋषभ वर्मा