भारतीय महिला हॉकी टीम टोक्यो ओलंपिक में स्वर्णिम प्रदर्शन करने में सफल रही है। हालांकि महिला टीम को इस साल ओलंपिक से बिना मेडल ही वापस लौटना पड़ा है पर उनके प्रदर्शन को कहीं से भी भुलाया नहीं जा सकता है। बता दें कि पहले सेमीफाइनल में अर्जेंटीना फिर ब्रॉन्ज़ मेडल मैच में ग्रेट ब्रिटेन के हाथों हार झेलने की वजह से इस साल महिला हॉकी टीम की वापसी मायुसी भरी रही है।
लेकिन जिस तरह का प्रदर्शन महिला हॉकी टीम ने दिखाया है उसे देख कर ये कहना गलत नहीं होगा की अगले ओलंपिक में ये टीम पोडियम फिनिश जरूर करेगी। खैर आज हम आपको महिला हॉकी से जुड़ी ऐसी दास्तान बताने जा रहे हैं जिससे कुछ ही लोग जानते होंगे। ओलंपिक में एक ऐसी टीम गोल्ड मेडल जीतने में कामयाब हुई थी जो महज 1 महीने पहले ही तैयार की गयी थी। तो चलिए जानते है वो टीम कौन थी और कब ये कारनामा करने में सफल रही थी।
ओलंपिक शुरू होने से ठीक एक महीने पहले मिली एंट्री
बता दें कि 1980 के मॉस्को ओलंपिक का कई देशों ने विरोध किया था जिसके चलते महज 5 टीमें ही ओलंपिक की महिला हॉकी स्पर्धा में भाग लेने वाली थीं। एक टीम की कमी के चलते ज़िम्बाब्वे की टीम को ओलंपिक शुरू होने के एक महीने पहले ओलंपिक में शामिल होने के लिए न्योता भेजा गया था। इस न्योते का ज़िम्बाब्वे को भी इंतज़ार था क्योंकि पिछले तीन ओलंपिक में राजनीती व विरोध के क्रम चलते वो हिस्सा नहीं ले पाई थी। न्योता मिलते ही तुरंत ज़िम्बाम्ब्वे ने टीम बना कर ओलंपिक की तैयारी शुरू कर दी थी।
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पहली बार खेलने जा रही थी एस्ट्रो टर्फ में
बता दें कि ज़िम्बाम्ब्वे की टीम को एस्ट्रो टर्फ पर हॉकी खेलने का एक भी मैच का अनुभव नहीं था। इसके बावजूद टीम बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 3 मैचों में जीत और 2 मैचों को ड्रा कराने में सफल रही थी। बता दें कि कम टीमें होने की वजह से मुकाबला राउंड रोबिन तर्ज पर खेला गया था। चूंकि बेहतरीन प्रदर्शन करने की वजह से ज़िम्बाब्वे ने ग्रुप में टॉप किया था जिस वजह से गोल्ड मेडल जीतने में वो सफल रहा। बता दें कि भारतीय महिला हॉकी टीम ने भी पहली बार ही इन ओलंपिक खेलों में हिस्सा लिया था। मालूम हो कि भारतीय टीम का ज़िम्बाब्वे के साथ हुआ मैच ड्रा रहा था।
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