प्रत्येक माह की चतुर्थी तिथि प्रभु श्री गणेश को समर्पित होती है, किन्तु भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को सबसे बड़ी गणेश चतुर्थी कहा जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन प्रभु श्री गणेश का जन्म हुआ था। इस दिन लोग गणपति बप्पा को अपने घर लेकर आते हैं तथा 10 दिनों तक उनकी सेवा की जाती है। परम्परा है कि घर में गणेश जी को लाने से वे घर के सारे कष्ट हर लेते हैं। गणेशोत्सव की धूम महाराष्ट्र में तो विशेष रूप से होती है। दूर-दूर से प्रभु श्री गणेश के श्रद्धालु गणेशोत्सव को देखने के लिए महाराष्ट्र में आते हैं। अनन्त चतुर्दशी के दिन धूमधाम से गणेश जी का विसर्जन किया जाता है। इस बार गणेश उत्सव 10 सितंबर से आरम्भ हो रहा है।

गणपति स्थापना के नियम:
चतुर्थी के दिन स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र पहनकर गणेश जी को लोगों के साथ लेने जाएं। गणेश जी की प्रतिमा खरीदते वक़्त ध्यान रखें कि प्रतिमा मिट्टी की होनी चाहिए, प्लास्टर ऑफ पेरिस या अन्य केमिकल्स की नहीं। इसके अतिरिक्त बैठे हुए गणेशजी की मूर्ति लेना शुभ माना गया है। उनकी सूंड बांई तरफ मुड़ी हुई होनी चाहिए तथा साथ में मूषक उनका वाहन अवश्य होना चाहिए। प्रतिमा लेने के पश्चात् एक कपड़े से ढककर उन्हें ढोल नगाड़ों के साथ धूमधाम से घर पर लेकर आएं।
प्रतिमा स्थापना के वक़्त मूर्ति से कपड़े को हटाएं तथा घर में प्रतिमा के प्रवेश से पहले इस पर अक्षत अवश्य डालें। पूर्व दिशा या उत्तर पूर्व दिशा में चौकी बिछाकर प्रतिमा को स्थापित करें। स्थापना के वक़्त चौकी पर लाल या हरे रंग का कपड़ा बिछाएं तथा अक्षत के ऊपर प्रभु श्री गणेश की प्रतिमा स्थापित करें। प्रभु श्री गणेश की प्रतिमा पर गंगाजल छिड़कें तथा गणेश जी को जनेऊ पहनाएं। प्रतिमा के बाएं तरफ अक्षत रखकर कलश स्थापना करें। कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं तथा आम के पत्ते और नारियल पर कलावा बांधकर कलश के ऊपर रखें। तत्पश्चात, विधि विधान से पूजा शुरू करें।
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