साल में 24 बार पड़ने वाली एकादशी में सभी माह की एकादशी का अपना महत्व है। एकादशी के व्रत का काफी अच्छा फल मिलता है और जीवन में बाधाओं से मुक्ति मिलती है। सितंबर माह में भाद्रपद में पड़ने वाले एकादशी का भी विशेष महत्व है। इसे अजा एकादशी, कृष्ण और आनंदी एकादशी के नाम से भी जानते हैं। क्या है इसका महत्व आइए जानते हैं। 
तीन सिंतबर को है अजा एकादशी
बताते हैं कि पापों से मुक्ति के लिए यह व्रत काफी लाभदायक है। यह सितंबर माह की पहली एकादशी है। यह तीन सितंबर के दिन मनाई जाएगी। लोग एकादशी के दिन भगवान विष्णु की आराधना करते हैं और उनसे आशीष प्राप्त करते हैं। बताते हैं कि आपकने पिछले जन्म में जो पाप किए हैं वह भी अजा एकादशी में व्रत करने से हटते हैं। यह काफी महत्वपूर्ण एकादशी मानी जाती है। बताते हैं कि एकादशी का व्रत करने से उतना ही फल मिलता है जितना अश्वमेघ यज्ञ करने से।
व्रत का मुहूर्त और पौराणिक कथा
अजा एकादशी दो सितंबर को ही सुबह छह बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी और तीन सितंबर को सुबह सात बजकर 44 मिनट तक रहेगी। लेकिन व्रत का पारण 4 सितंबर को सुबह आठ बजकर 23 मिनट पर ही किया जा सकेगा। इस व्रत से जुड़ी पौराणिक कथा है कि भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर को व्रत के विषय में बताया था। यह ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी है। वहीं राजा हरिश्चंद्र से भी यह व्रत की कथा जुड़ी है। बताया जाता है कि सत्यप्रिय और ईमानदार राजा हरिश्चंद्र ने अपना सब कुछ गवां दिया और श्मशान में काम करना शुरू किया तो ऋषि गौतम ने उन्हें एकादशी का व्रत करने को कहा था। उससे प्रसन्न होकर भगवान ने राजा हरिश्चंद्र को सब कुछ दिया और जीवन सुखमय बनाया। व्रत को करने के लिए एकादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठे और स्नाना करें। पूजा स्थल साफ करें और साफ कपड़े धारण करें। विष्णु और लक्ष्मी की पूजा के बाद चरणामृत बांटें। व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी के दिन ब्राह्मण को भोजन कराने के बाद व्रत का पारण कराना अच्छा होता है।
GB Singh
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