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कमजोर सीटों पर कांग्रेस ने झोंके दमदार क्षेत्रीय नेता

देहरादून, उत्तराखंड की 70 विधानसभा सीटों में से बहुमत का आंकड़ा जिस के पास होगा, सरकार उसी की बनेगी। इसीलिए सीटों के भू-राजनीतिक और सामाजिक समीकरणों को साधने के लिए चुनाव मैदान में मौजूद हर दल कलाकारी में पीछे रहने को तैयार नहीं है। कुमाऊं और ऊधमसिंहनगर के तराई क्षेत्र की 29 सीटों और हरिद्वार की 11 सीटों को ध्यान में रखकर मुख्य मुकाबले में शामिल दलों भाजपा और कांग्रेस ने बिसात बिछा दी है। इन दोनों ही दलों ने अपनी-अपनी कमजोर आंकी जाने वाली सीटों को संभालने के लिए क्षत्रपों को मोर्चे पर झोंक दिया है। गढ़वाल क्षेत्र की 30 सीटों पर उलझी पड़ी चुनावी गुत्थियों को सुलझाने के लिए क्षेत्रीय नेताओं को जिम्मेदारी देकर कांग्रेस ने स्थिति मजबूत की है। नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह और प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल इस भूमिका में लामबंद हैं। वहीं गढ़वाल क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्रियों के रूप में बड़े चेहरे होने के बावजूद उनकी मदद लेने के मामले में भाजपा अभी सोच-विचार ही कर रही है।

प्रदेश में पांचवीं विधानसभा चुनाव में बाजी मारने के लिए दल अपने-अपने चक्रव्यूह रच रहे हैं। भाजपा और कांग्रेस ने अपने-अपने प्रत्याशी मैदान में उतार दिए हैं। दोनों ही दलों ने कई सीटों पर प्रत्याशी बदले हैं तो कई स्थानों पर नए चेहरों पर दांव खेला गया है। चुनावी समर में अपेक्षाकृत कमजोर समझे जा रहे नए चेहरों की मदद के लिए दिग्गज नेताओं को मोर्चे पर लगाया जा रहा है। फिलवक्त कांग्रेस गढ़वाल क्षेत्र में इस मामले में ज्यादा सक्रिय व आत्मनिर्भर दिख रही है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के रूप में भाजपा के पास कुमाऊं मंडल से चेहरा है। भाजपा ऊधमसिंहनगर के तराई से लेकर कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में धामी का रणनीतिक उपयोग करती दिखाई दे रही है। कमोबेश इसी तर्ज पर कांग्रेस की ओर से पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने मोर्चा संभाल रखा है। हरिद्वार में भी रणनीति के मामले में भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दल एकदूसरे को टक्कर दे रहे हैं। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के प्रभाव का हरिद्वार में चुनावी समीकरणों को साधे रखने में उपयोग किया जा रहा है।

प्रीतम और गणेश की मोर्चे पर तैनाती

गढ़वाल क्षेत्र में रणनीति के तहत ही पार्टी ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में गणेश गोदियाल और कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में प्रो जीतराम की तैनाती की। गोदियाल पौड़ी के साथ ही चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों की सीटों पर पार्टी की रणनीति को धार दे रहे हैं। खासतौर पर कमजोर समझी जा रही सीटों पर गोदियाल सक्रियता बनाए हुए हैं। कांग्रेस के लिए नेता प्रतिपक्ष प्रीतम सिंह बड़ी भूमिका में हैं। चकराता के साथ ही विकासनगर, सहसपुर, मसूरी की सीटों पर उनके प्रभाव का पार्टी उपयोग कर रही है। उत्तरकाशी जिले की मुख्य रूप से दो सीटों पुरोला, यमुनोत्री में भी प्रीतम की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है। बकौल प्रदेश प्रभारी देवेंद्र यादव कांग्रेस पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत का भी चुनाव प्रचार में अधिक उपयोग करेगी।

सांसदों की सीमित सक्रियता

भाजपा ने चौथी विधानसभा के चुनाव के बाद 2019 में लोकसभा की सभी पांचों सीटों पर जीत दर्ज की थी। गढ़वाल क्षेत्र में सांसदों की सक्रियता भी सीमित दिखाई दे रही है। क्षेत्र की कई सीटों पर पार्टी ने नए चेहरों को मैदान में उतारा है। विधानसभा चुनाव में मिलने वाली सफलता आगे लोकसभा चुनाव के समीकरणों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। विधानसभा चुनाव में सांसदों की सक्रियता का बड़ा कारण यह भी होता है। गढ़वाल में दो संसदीय सीट पौड़ी व टिहरी हैं। पौड़ी गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत कुछ सक्रिय हैं, लेकिन यह सक्रियता अपेक्षा के अनुरूप नहीं है। टिहरी सांसद माला राज्यलक्ष्मी शाह की स्थिति भी कुछ इसीतरह है।

भाजपा: पूर्व मुख्यमंत्रियों को लेकर हिचक

सत्तारूढ़ भाजपा अभी अपने दमदार नेताओं को चुनाव प्रबंधन से जोड़ नहीं सकी है। पार्टी के पास पूर्व मुख्यमंत्री व पूर्व केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा, पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत व पूर्व मुख्यमंत्री व गढ़वाल सांसद तीरथ सिंह रावत हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भुवनचंद्र खंडूड़ी स्वास्थ्य कारणों से सक्रिय नहीं हैं। पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोश्यारी महाराष्ट्र के राज्यपाल के रूप में चुनावी राजनीति से दूर ही हैं। पांचवीं विधानसभा के चुनावी महायुद्ध में पूर्व मुख्यमंत्रियों की शक्ति का योजनाबद्ध व रणनीतिक उपयोग अब तक होता नहीं दिखा। हरिद्वार सांसद रमेश पोखरियाल निशंक का उपयोग हरिद्वार के साथ ही गढ़वाल की कई सीटों पर पार्टी की स्थिति मजबूत बनाने में हो सकता है। उनका भी सीमित उपयोग हो पा रहा है। हालांकि नामांकन के अंतिम दिनों में असंतोष थामने और टिकट कटने से नाराज विधायकों को मनाने में पूर्व मुख्यमंत्रियों को मोर्चे पर तैनाती का कुछ असर ये रहा कि कुछ नाराज विधायक व नेता अब पार्टी के सुर से सुर मिलाने लगे हैं।

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