- एमएलसी चुनाव के नतीजों के बाद और मचेगा घमासान
- सलमान जावेद राईनी ने सपा छोड़ी, अखिलेश की चुप्पी पर उठाया सवाल
- मुलायम सिंह के कई साथी जल्दी ही तोड़ेंगे सपा से नाता
लखनऊ, 13 अप्रैल 2022. कांग्रेस पार्टी के असंतुष्ट नेताओं के समूह यानी जी-23 के नेता जिस तरह से पार्टी नेतृत्व के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, ठीक उसी तर्ज पर अब उत्तर प्रदेश में भी समाजवादी पार्टी (सपा) में कई नेता अखिलेश यादव के खिलाफ खुलकर बोलने लगे हैं। विधानसभा चुनावों में हुई करारी हार के बाद से शुरू हुए इस सिलसिले के चलते सपा मुखिया अखिलेश यादव के सामने इन दिनों अपनों के दूर होने का संकट मंडरा रहा है। अखिलेश की चुनावी रणनीति को मुखालफत सबसे पहले उनके चाचा शिवपाल यादव ने की थी। इसके बाद मुलायम सिंह यादव के खासे करीबी पार्टी सांसद शफीकुर्रहमान और आजम खां के खेमे से भी बगावत की आवाज़ें उठी। अब इसी क्रम में सपा नेता सलमान जावेद राईन ने अखिलेश यादव द्वारा आजम खां तथा सपा विधायक नाहिद हसन और शहजिल इस्लाम के लिए आवाज ना उठाने के सवाल पर सपा इस्तीफ़ा दे दिया। जावेद राईन का कहना है कि जो नेता (अखिलेश) अपने विधयाकों के लिए आवाज नहीं उठा सकता वह अपने कार्यकर्ताओं के लिए क्या आवाज उठाएगा? इसलिए ऐसे दल में अब उन्हें नहीं रहना।
लम्भुआ सुल्तानपुर के सलमान जावेद राईन ने पार्टी के जिला अध्यक्ष को भेजे अपने इस्तीफे को मीडिया में भी जारी किया है। अपने इस्तीफे में उन्होंने जिस तरह सपा मुखिया अखिलेश यादव को निशाने पर लिया है, उससे पार्टी नेताओं में हडकंप मचा हुआ है। इस पत्र की आड़ में अब पार्टी के तमाम नेता टीम अखिलेश के विधानसभा एवं विधान परिषद चुनाव हारे नेताओं को पार्टी के तमाम पदों से हटाने की मांग कर रहे हैं। ऐसी मांग करने वाले पार्टी नेताओं का कहना है कि “नई हवा है और नई सपा है” का नारा देने वाले टीम अखिलेश के नेताओं ने पार्टी के सीनियर नेताओं को हाशिए पर ढकेल दिया, जबकि टीम अखिलेश के तमाम नेता विधानसभा एवं विधान परिषद के चुनावों में अपनी जमानत तक नहीं बचा सके। ऐसे नेताओं से घिरे होने के कारण अखिलेश की चुनावी रणनीति कागजी साबित हुई है। ऐसे कहने वाले पार्टी कार्यकर्ता अब सपा मुखिया पर पार्टी के कोर वोटरों की उपेक्षा करने का आरोप भी लगा रहे हैं। खास तौर पर मुस्लिमों के मसले पर चुप्पी के सवाल पर यह कार्यकर्ता मुखर हैं। इससे अखिलेश यादव के लिए चुनौती बढ़ गई है। वरिष्ठ पत्रकार गिरीश पांडेय का यह मत है।
सपा की राजनीति को लेकर गिरीश कहते हैं कि विधानसभा और विधान परिषद के चुनाव में यादव-मुस्लिम वोटरों ने इस बार सपा को जिताने के लिए पूरी ताकत लगा दी थी। मुस्लिम वोटरों की सपा के प्रति एकजुटता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दूसरे दलों से उतरे कई कद्दावर मुस्लिम चेहरे अपनी बिरादरी के वोट तक के लिए तरस गए। नतीजों के बाद पार्टी के भीतर के कई फैसलों के बाद अब मुस्लिम नेताओं का एक तबका पार्टी पर खुले तौर पर मुसलमानों को हाशिए पर रखने का आरोप लगा रहा है। आजम खां के खेमे से इसे लेकर बगावती आवाज उठी भी है। चर्चा है कि आजम खां के इशारे पर उनके अपने लोगों ने यह आवाज उठी है और यह बगावती शोर आने वाले दिनों में सपा के लिए तूफान सरीखा साबित हो सकता है। और सपा से अलग होकर आजम खां एक अलग दल या सियासी मोर्चा बना लें तो कोई हैरत नहीं होगी।
आजम पहले भी सपा छोड़ चुके हैं। इस बार वह एक कदम आगे बढ़ते हुए मोर्चा खड़ा कर सकते हैं। इसमें ओवैसी भी शामिल हो सकते हैं। इसके अलावा यह मोर्चा बसपा कांग्रेस के भी कई और मुस्लिम नेताओं के लिए मंच हो सकता है। आजम खां ने पहले जब सपा छोड़ी थी तब उन्होंने न पार्टी बनाई थी न ही किसी दल में गए लेकिन इस बार उन्हें व उनके परिवार को जेल का कड़वा अनुभव हो चुका है। अब उनके बेटे अब्दुल्ला को भी सियासत करनी है। अब्दुल्ला ने हाल में ट्वीट कर अपनी भावनाएं कुछ यूं जाहिर कीं। बगावत की यह चिंगारी तमाम सपा नेताओं को उकसा रही है। अब मुद्दा सपा द्वारा आजम का साथ छोड़ने, मुस्लिमों की बात न करने तक पहुंच गया है। सपा सांसद शफीकुररहमान ने कहा था कि सपा मुस्लिमों की आवाज नहीं उठा रही है। दो साल से आजम के जेल में रहने से उनके समर्थकों में इसे लेकर नाराजगी बढ़ी। जिसके चलते सलमान जावेद राईनी ने सपा से इस्तीफ़ा दे दिया है और जल्दी ही मुलायम सिंह के कई साथी और विधान सभा चुनावों के पहले सपा में आये कई अन्य नेता सपा से नाता तोड़ लेंगे। इसके संकेत मिलने लगे हैं। शिवपाल सिंह यादव भी आजम के संपर्क में हैं। लंबे समय से चुनौतियों से जूझ रहे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के लिए यह अलग तरह का संकट है। इस तरह के झंझावतों से मुलायम सिंह यादव बड़ी चतुराई से जूझ लेते थे लेकिन अखिलेश यादव में ऐसी काबिलियत शायद नहीं है।