विक्रम ने इस काम को अंजाम देने के लिए हाल में ईरान से हींग के बीज मंगाए हैं। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर के पास पहाड़ी इलाके में हींग की खेती की शुरुआत की जाएगी। इसके साथ ही वह राज्य के सोलन, लाहौल-स्फीति, सिरमौर, कुल्लू, मंडी और चंबा में भी हींग की खेती कराना चाहते हैं। डॉ. शर्मा बताते हैं कि वह उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और नेपाल से सटे यूपी के पहाड़ी इलाके में भी हींग उगाना चाहते हैं।
उनका कहना है कि इस समय शुद्ध हींग का बाजार मूल्य 35 हजार रुपए किलो है। डॉ. शर्मा के मुताबिक, अगर भारत के किसान इसकी खेती करने लगें तो उनका कायाकल्प हो सकता है, क्योंकि देश में हींग की मांग बहुत ज्यादा है और उत्पादन जीरो। देश में जहां आयुर्वेद और अन्य भारतीय चिकित्सा पद्धति की दवाएं बनाने में हींग का काफी इस्तेमाल होता है। 2012 में जम्मू और कश्मीर के डॉ. गुलजार ने अपने राज्य में हींग की खेती की कोशिश की थी, लेकिन वह प्रयास कामयाब नहीं हो पाया।
डॉ. शर्मा कहते हैं कि हींग का पौधा जीरो से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान सहन कर सकता है। इस लिहाज से देश के पहाड़ी राज्यों के कई इलाके हींग की खेती के लिए मुफीद हैं। इन राज्यों में किसान अब भी परंपरागत खेती कर रहे हैं और इसे जंगली और आवारा पशु भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। डॉ. शर्मा के मुताबिक, हींग को जंगली और आवारा पशु नुकसान नहीं पहुंचाते। इससे किसानों को उनकी मेहनत का पूरा मू्ल्य मिल सकेगा।
क्या हैं मुश्किलें हींग की खेती आसान नहीं है, क्योंकि इसका बीज हासिल करना बहुत मुश्किल काम है। दुनिया में इसकी खेती मुख्य रूप से अफगानिस्तान, ईरान, इराक, तुर्कमेनिस्तान और बलूचिस्तान में होती है। वहां हींग का बीज किसी विदेशी को बेचने पर मौत की सजा तक सुनाई जा सकती है। डॉ. शर्मा कहते हैं कि उन्होंने रिसर्च के लिए बड़ी मुश्किल से इसका बीज ईरान से मंगाया है। इसे ही वह अलग-अलग जगहों पर उगाएंगे।