पूर्व एडीजी एसके सूद ने अपनी किताब के चौथे अध्याय में लिखा है, जुलाई 1971 में बीएसएफ की 103वीं बटालियन, जो कूच बिहार में थी, उसने पाकिस्तानी सेना के कब्जे से 1800 वर्ग मील का इलाका छीन लिया था। सीमा सुरक्षा बल की 71वीं बटालियन ने महानंदा नदी के बाद पाकिस्तान की सेना पर जबरदस्त हमला किया था। इस लड़ाई में बीएसएफ के सिपाही पदम बहादुर लामा शहीद हुए थे।
सीमा सुरक्षा बल ‘बीएसएफ’ शुक्रवार को अपना 59वां स्थापना दिवस समारोह मना रहा है। इस बल ने अनेक मोर्चों पर अपनी बहादुरी का लोहा मनवाया है। एक दिसंबर 1965 को बल की स्थापना के मात्र छह साल के भीतर, ‘बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई’ जैसा बड़ा टॉस्क बीएसएफ को मिला था। इस लड़ाई में मार्च 1971 से लेकर इसके खत्म होने, यानी दिसंबर 1971 तक बीएसएफ शामिल रही थी। कई मोर्चों पर बीएसएफ ने असीम बहादुरी का परिचय दिया। बीएसएफ के पूर्वी फ्रंटियर के आईजी ‘गोलक मजूमदार को बांग्लादेश की तरफ से ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश’ का सम्मान दिया गया। 1971 में बीएसएफ की 103वीं बटालियन, जो कूच बिहार में थी, उसने पाकिस्तानी सेना के कब्जे से 1800 वर्ग मील का इलाका छीन लिया था।
पाकिस्तानी सेना को दिया था करारा जवाब
संजीव कृष्ण सूद, एडीजी बीएसएफ (रिटायर्ड) ने अपनी पुस्तक ‘बीएसएफ, द आइज एंड ईयर्स ऑफ इंडिया’ में बांग्लादेश की मुक्ति के दौरान ‘सीमा सुरक्षा बल’ के शौर्य को लेकर कई खुलासे किए हैं। सूद ने लिखा है कि एक दिसंबर 1965 को बल की स्थापना के छह साल के भीतर, ‘बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई’ जैसा बड़ा टॉस्क बीएसएफ को मिला था। बांग्लादेश की मुक्ति की लड़ाई में बीएसएफ ने भी भारतीय सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया था। कई मोर्चों पर तो अकेले बीएसएफ ने ही पाकिस्तानी सेना को करारा जवाब दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बीएसएफ के डीजी केएफ रुस्तम से कहा था, आपको जो अच्छा लगे, वह करें, लेकिन पकड़े न जाएं। अपनी पूरी ताकत बॉर्डर पर लगा दें। इस लड़ाई में बीएसएफ के पूर्वी फ्रंटियर के आईजी ‘गोलक मजूमदार को फैसले लेने और कार्रवाई की पूरी छूट दे दी गई। बांग्लादेश की तरफ से गोलक मजूमदार को ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश’ का सम्मान दिया गया।
बांग्लादेश का संविधान तैयार करने में बीएसएफ का रोल
‘बीएसएफ’ ने बांग्लादेश का अंतिम संविधान तैयार करने में मदद की थी। अपनी किताब में संजीव कृष्ण सूद ने लिखा है, बीएसएफ के तत्कालीन चीफ लॉ अफसर, कर्नल एमएस बैंस ने बांग्लादेश के ‘अंतिम संविधान’ का ड्राफ्ट तैयार करने में मदद की थी। उनके कई सुझावों को ड्राफ्ट में शामिल किया गया। आईजी गोलक मजूमदार ने इस लड़ाई में अहम योगदान दिया था। उन्होंने पहले त्रिपुरा फिर पश्चिम बंगाल में काम किया था, इसलिए ‘इंटेलिजेंस’ पर उनकी अच्छी पकड़ थी। पाकिस्तान को लेकर उनके पास तमाम खुफिया सूचनाएं रहती थीं। वे अकेले ऐसे व्यक्ति थे, जो ‘बांग्लादेश अवामी लीग’ के संपर्क में रहे। उन्होंने कोलकाता में पाकिस्तान के उच्चायुक्त हुसैन अली को हार स्वीकार करने के लिए तैयार किया था। उनके सामने दूतावास पर पाकिस्तान का झंडा उतर रहा था। वे दिसंबर 1971 में लड़ाई खत्म होने तक अवामी लीग के साथ संपर्क में रहे। गोलक मजूमदार को परम विशिष्ट विश्ष्टि सेवा मेडल प्रदान किया गया था। बांग्लादेश सरकार ने उन्हें ‘फ्रेंड्स ऑफ बांग्लादेश’ के सम्मान से नवाजा था।
बीएसएफ ने मुक्ति वाहिनी को प्रशिक्षित किया
मुक्ति वाहिनी के अस्तित्व में आने से पहले ‘मुक्ति योद्धा’ तैयार किए जा रहे थे। संजीव कृष्ण सूद के अनुसार, बीएसएफ ने ही मुक्ति वाहिनी को खड़ा किया था। उनकी ट्रेनिंग व संगठन का ढांचा सीमा सुरक्षा बल की अकादमी के तत्कालीन निदेशक ब्रिगेडियर बीएस पांडे ने तैयार किया था। बॉर्डर के विभिन्न हिस्सों पर 17 ट्रेनिंग सेंटर शुरू किए गए थे। इस सेंटरों पर 3000 मुक्ति वाहिनी कैडर को प्रशिक्षण मिला। बीएसएफ ने पाकिस्तान के संचार सिस्टम को भारी नुकसान पहुंचाया। बांग्लादेश का मुख्यालय स्थापित किया गया। बांग्लादेश को हर तरह की आपरेशन मदद दी गई। यहां तक कि उनका वायरलेस सिस्टम, बीएसएफ ने ही खड़ा किया था। बीएसएफ ने पूर्वी पाकिस्तान में अनेक पुलों को ध्वस्त कर पाक सेना को बड़ा नुकसान पहुंचाया। पाकिस्तान में बड़े शहरों का लिंक खत्म कर दिया गया।
‘ब्लैक शर्ट्स’ कमांडो ने पाकिस्तान को पहुंचाया नुकसान
बीएसएफ ने स्पेशल कमांडो ‘ब्लैक शर्ट्स’ तैयार किए थे। ये वही कमांडो थे, जिन्होंने पाकिस्तानी सेना पर घात लगाकर हमला किया। पाकिस्तान की अधिकांश पोजिशन तबाह कर दी गई। दूसरे चरण में बीएसएफ को सीमा के अलावा सभी बीओपी की सुरक्षा की जिम्मेदारी मिली। दिसंबर 1971 में बीएसएफ ने सेना के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ाई लड़ी थी। हर बड़े टॉस्क में बीएसएफ को शामिल किया गया। सीमा सुरक्षा बल की 23 यूनिटों का कंट्रोल सेना के पास था। 71वीं बटालियन, जिसके पास 10 ‘पोस्ट ग्रुप आर्टिलरी’ थी, उसकी कमांड सहायक कमांडेंट एलएस नेगी ने संभाल रखी थी। नवाबगंज पर कब्जा जमाने में उनका खास योगदान रहा था। मेजर जनरल लछमन सिंह, पीवीएसएम, वीआरसी जीओसी 20 माउंटेन डिवीजन ने ‘डीओ’ लैटर लिखकर बीएसएफ कमांडर ‘आर्टिलरी’ की बहादुरी और मदद का जिक्र किया था। उन्होंने लिखा कि बीएसएफ के बिना नवाबगंज पर कब्जा संभव नहीं था।
जब पाकिस्तान से छीन लिया 1800 वर्ग मील का इलाका
पूर्व एडीजी एसके सूद ने अपनी किताब के चौथे अध्याय में लिखा है, जुलाई 1971 में बीएसएफ की 103वीं बटालियन, जो कूच बिहार में थी, उसने पाकिस्तानी सेना के कब्जे से 1800 वर्ग मील का इलाका छीन लिया था। सीमा सुरक्षा बल की 71वीं बटालियन ने महानंदा नदी के बाद पाकिस्तान की सेना पर जबरदस्त हमला किया था। इस लड़ाई में बीएसएफ के सिपाही पदम बहादुर लामा शहीद हुए थे। दो अन्य जवान घायल हुए। यह बटालियन जैसे ही बांग्लादेश के राजशाही में पहुंची, तो वहां लोगों ने ‘लॉन्ग लाइव इंडिया बांग्लादेश फ्रेंडशिप’ के नारे लगाए। 77वीं बटालियन जो पहाड़ी इलाके में तैनात थी, उस पर पाकिस्तान ने भारी बमबारी की। बीएसएफ ने जब जवाब देना शुरू किया तो पाकिस्तान फ्लैग मीटिंग के लिए राजी हो गया। 22 अप्रैल 1971 को दोनों पक्ष, फायरिंग रोकने पर राजी हो गए। सीमा सुरक्षा बल ने पूर्वी पाकिस्तान की खानपुर बीओपी पर कब्जा कर लिया था। इसमें बीएसएफ के नायक अमल कुमार मंडल शहीद हो गए थे।