इमरोज नहीं रहे। वही इमरोज, जिनसे मौजूदा पीढ़ी शायद उतनी वाबस्ता न हो, लेकिन जब-जब नज्म-कविताएं लिखने वालों की दुनिया में रूहानी रिश्तों का जिक्र आया, इमरोज का नाम शिद्दत से याद किया जाता रहा। शुक्रवार को मुंबई में उन्होंने 97 बरस की उम्र में दुनिया से रुखसत ले ली। यूं तो वे चित्रकार थे। बाद में कविताएं-नज्में भी कागजों पर उतारीं, लेकिन मशहूर कवयित्री अमृता प्रीतम से हमसाए की तरह रही उनकी दोस्ती ज्यादा सुर्खियों में रही।
जिस तरह अमृता अपने समय से कहीं आगे की कवयित्री मानी गईं, वैसे ही उनका और इमरोज का रिश्ता उनके दौर से कहीं आगे का रहा और हमेशा बाइज्जत याद किया जाता रहा। दोनों ने कभी शादी नहीं की, लेकिन इमरोज कई दशक अमृता प्रीतम के साथ रहे। अमृता उम्र में उनसे कोई सात साल बड़ी थीं, लेकिन दोनों का रिश्ता उम्र के फासलों से भी बड़ा था। एक बार इमरोज ने शायद अमृता के लिए ही लिखा था, ”जिंदगी में मनचाहे रिश्ते अपने आप हमउम्र हो जाते हैं..।” 2005 में कवयित्री के गुजर जाने के कुछ बरस बाद उन्होंने ‘अमृता के लिए नज्म जारी है’ नाम से किताब भी लिखी। अमृता ने अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ में साहिर लुधियानवी के अलावा अपने और इमरोज के रिश्तों का जिक्र किया है।
मिलना था तो दोपहर में मिलते… अमृता ने अपने जीते जी इमरोज से कहा था, “अजनबी तुम मुझे जिंदगी की शाम में क्यों मिले, मिलना था तो दोपहर में मिलते।” समाज के रीति-रिवाजों के मुताबिक दोनों ने कभी शादी नहीं की। इमरोज अमृता को ही अपना ‘समाज’ बताते थे। कई बार स्कूटर पर पीछे बैठकर अमृता इमरोज की पीठ पर कुछ न कुछ उकेरती रहती थीं। इमरोज कहते थे कि कई बार मेरी पीठ पर अमृता ने साहिर का नाम लिखा, लेकिन क्या फर्क पड़ता है। वो साहिर को चाहती हैं तो चाहें, मैं उन्हें चाहता हूं।
लाहौर आर्ट स्कूल में पढ़े, कैलीग्राफी की इमरोज ने शुक्रवार को अपने मुंबई स्थित आवास पर अंतिम सांस ली। करीबी दोस्त अमिया कुंवर ने उनके निधन की पुष्टि की। वे उम्र से जुड़ी कई समस्याओं से जूझ रहे थे। बताया जाता है कि उन्हें पाइप के जरिए खाना दिया जा रहा था। उनका मूल नाम इंद्रजीत सिंह था। बंटवारे से पहले के पंजाब में 26 जनवरी 1926 को जन्मे इमरोज ने लाहौर के आर्ट स्कूल से रंगों की दुनिया की तालीम ली। कभी सिनेमा के बैनरों के लिए तो कभी फिल्मों के पोस्टरों के लिए रंग भरे। उर्दू पत्रिका ‘शमा’ के लिए छह साल कैलीग्राफी भी की। टेक्सटाइल और घड़ियों के लिए डिजाइन बनाने का भी काम किया। उधर, अमृता की शादी प्रीतम सिंह से हो चुकी थी। कुछ साल बाद एक मुशायरे में उनकी साहिर लुधियानवी से मुलाकात हुई। वहीं, इमरोज से उनकी मुलाकात एक किताब के कवर को डिजाइन कराने के सिलसिले में हुई। बताते हैं कि इंद्रजीत ने अमृता के कहने पर ही अपना नाम इमरोज लिखना शुरू किया। इमरोज आज गुजर गए, अमृता प्रीतम के ही शब्दों में कहें तो कलम ने आज गीतों का काफिया तोड़ दिया…।