राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली मतदान में पिछड़ गई और सभी सातों लोकसभा सीटों के लिए 58.70 फीसदी वोटरों ने ही मतदान िकया। यह पिछले दो चुनावों से भी कम रहा। शनिवार को छठे चरण के लिए छह राज्यों और दो केंद्रशासित प्रदेशों की 58 सीटों पर हुए 61.56% मतदान से भी कम रहा। राजधानी में सबसे कम 53.86% मतदान नई दिल्ली में हुआ, जबकि उत्तर-पूर्व दिल्ली में सर्वाधिक 62.87% वोटिंग हुई।
लोकसभा चुनाव में वोटिंग प्रतिशत कम होने से दिल्ली में सत्ता का संग्राम कांटे का हो गया है। वोटिंग में गिरावट आने से नतीजे नजदीकी होने के आसार हैं। राजनीति के जानकारों का कहना है कि जीत-हार का अंतर बड़ा नहीं होगा। मतदान की रफ्तार में घट-बढ़ व मतदाताओं की खामोशी से किसी अनुमान पर पहुंचना भी आसान नहीं है। इसमें फ्लोटिंग वोटर की भूमिका बड़ी हो गई है। दिल्ली की बाकी सीटों से ज्यादा वोटिंग होने से उत्तर-पूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली व पश्चिमी दिल्ली की सीटों के नतीजे और भी दिलचस्प होंगे।
इस सीट पर दो पूर्वांचली आमने-सामने हैं। शनिवार सुबह से ही यहां वोटिंग पैटर्न दिलचस्प दिखा। मुस्लिम इलाकों के साथ झुग्गी बस्ती के पोलिंग बूथ पर सुबह से लाइन लगी रही। वहीं, चढ़ती धूप के साथ दूसरे इलाकों में मतदाता कम दिखे। लंबी लाइन की सूचना मिलने पर भाजपा ने अतिरिक्त सक्रियता दिखाई। उन्हाेंने अलग-अलग माध्यमों, खासकर सोशल मीडिया से इसकी सूचना अपने लोगों को दी। इसका असर भी वोटिंग पर दिखा। चुनाव में पाकिस्तान की एंट्री से भी मतदाता अछूते नहीं रहे। पाक के पूर्व मंत्री चौधरी फवाद हुसैन और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सोशल मीडिया पर हुई नोकझोंक की चर्चा दोपहर बाद बूथ पर भी दिखी।
जिस तरह से वोटर शांत है, उसमें माना जा रहा है कि मुकाबला कांटे का है। इसमें बड़ी भूमिका फ्लोटिंग वोटर की है। वोटिंग सेंटर पर भाजपा व गठबंधन के वोटर ने तो बातों-बातों में अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर दी, लेकिन फ्लोटिंग वोटर ने चुप्पी साधे रखी। जानकार मानते हैं कि इधर-उधर जाने वाले वोट अब खास हो गए हैं। 2019 संसदीय चुनाव के आधार पर अगर इस तरह के 6-8 फीसदी वोटर भाजपा को मत नहीं देते तो गठबंधन दो से तीन सीटें जीत सकता है। इसमें उत्तर पूर्वी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली व पूर्वी दिल्ली के नतीजे दिलचस्प होंगे।
वोटिंग प्रतिशत ज्यादा नहीं गिरा। इससे गठबंधन को बड़ा फायदा होता नहीं दिख रहा। गठबंधन के मुद्दों ने लोगों से अपील की, लेकिन भाजपा को हटाने के लिए वे इसे अपने वोट में नहीं बदल सके, जबकि विपक्ष के मुद्दों से लगाव के कारण वोटिंग प्रतिशत बढ़ना चाहिए था।
– प्रो. चंद्रचूड़ सिंह, प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय