साल 2024 अपने अंत पर आ गया है और जल्द ही वर्ष 2025 का आगाज होगा। वर्ष 2024 की बात करें तो इस साल शेयर बाजार ने रिकॉर्ड बनाएं हैं, हालांकि, बाजार में भारी गिरावट आई। इस गिरावट से निवेशकों को लाखों करोड़ों रुपये का नुकसान भी हुआ है। अब निवेशकों की नजर अगले साल यानी वर्ष 2025 पर बनी हुई है।
हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि 2025 में शेयर बाजार के कारोबार को लेकर क्या संकेत मिल रहे हैं।
साल 2024 में कैसा रहा कारोबार
कोरोना महामारी के कारण साल 2020 में भारी गिरावट आई थी। इस साल शेयर बाजार ने इस गिरावट को रिकवर कर लिया। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) के बेंचमार्क निफ्टी 2020 के निचले स्तर से तीन गुना ज्यादा उछल गया है। इस साल हुए लोक सभा चुनाव के नतीजे आने से एक दिन पहले स्टॉक मार्केट में रिकॉर्ड तोड़ रैली दिखी, लेकिन नतीजे आने के बाद बाजार में भारी बिकवाली आ गई।
भारत के स्टॉक मार्केट के वैल्यूएशन की बात करें तो वह लॉन्ग टर्म हिस्टॉरिकल एवरेज से ज्यादा है। 2024 के अंत में शेयर बाजार में बहुत अनिश्चितता देखने को मिल रही है। विदेशी निवेशकों द्वारा जारी आउटफ्लो के कारण बाजार निचले स्तर को छू गया। ऐसे में यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि इस अनिश्चितता के कारण 2025 में शेयर बाजार के सामने कई चुनौतियां भी खड़ी होंगी।
शेयर बाजार के लिए क्या रहेंगी चुनौती?
भू-राजनीतिक चिंता का असर वैश्विक बाजार पर देखने को मिलता है। वर्ष 2024 में भी यूक्रेन-रूस युद्ध और इजरायल-ईरान के बीच चल रहे विवाद के कारण निवेशकों को भारी नुकसान का सामना करना पड़ा। इसके अलावा अमेरिकी बाजार की चाल और राजनीति का असर भारतीय बाजार पर पड़ता है। अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद इंडियन स्टॉक मार्केट में भारी गिरावट आई। डॉलर और रुपये के एक्सचेंज में रुपये की वैल्यू कम हो गई।
अमेरिकी शेयर बाजार की बात करें तो इस बाजार का पूंजीकरण सही है। एसएंडपी 500 अपने ट्रेलिंग अर्निंग से लगभग 28 गुना की उछाल पर है। हाल ही में डोनाल्ड ट्रंप ने टैरिफ को लेकर घोषणा किया है। इस घोषणा के बाद विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार में निकासी शुरू किया, जिसके कारण स्टॉक मार्केट अपने निचले स्तर से भी गिर गया।
2025 में ये रहेंगी मुख्य चुनौतियां
ट्रंप को मात दे सकती है इकोनॉमी
वर्ष 2025 में ग्लोबल इकोनॉमी और मार्केट में उतार-चढ़ाव का प्रमुख फैक्टर ट्रंप हो सकता है। माना जा रहा है कि ट्रंप कई कठोर फैसले लेंगे। इन फैसलों का असर शेयर बाजार पर सीधा पड़ेगा। हालांकि, ट्रंप ऐसा कोई फैसला नहीं लेंगे जो इकोनॉमी के लिहाज से तर्कसंगत या सही न हो।
ट्रंप ने चीन से होने वाले इम्पोर्ट पर 60 प्रतिशत टैरिफ लगाने की धमकी दी है। अमेरिका में चीन में बने सामान का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है और 30 प्रतिशत टैरिफ लगाने से भी इन वस्तुओं के दाम बहुत अधिक बढ़ जाएंगे। इससे फेड रिजर्व की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी जो अमेरिका की इकोनॉमी में महंगाई कम करने के लिए लगातार प्रयास कर रहा है। इंटरेस्ट रेट में कटौती के साइकिल को रोकने, जिसे शुरू करने में फेड को सफलता मिली है, का दुनियाभर की इकोनॉमी पर सामान्य रूप से और अमेरिकी की इकोनॉमी पर खास तौर पर बुरा असर देखने को मिलेगा।
डॉ. वी के विजयकुमार, मुख्य निवेश रणनीतिकार (चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट), जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज
डॉलर का मजबूत होना
अमेरिकी चुनावों के बाद डॉलर मजबूत हुआ है। अगर अमेरिका में कॉरपोरेट टैक्स 15 फीसदी हो जाता है तो इससे कंपनियों की कमाई बढ़ जाएगी। इसका लाभ अमेरिकी बाजार में दिखेगा क्योंकि अधिक पूंजी का निवेश होगा। इसके अलावा डॉलर और मजबूत होगा।2025 में डॉलर और मजबूत होता है तो यह उभरते बाजारों के लिए चुनौती बनेगा। हालांकि, डॉलर ज्यादा समय तक मजबूत नहीं रहेगा क्योंकि अमेरिकी निर्यात (एक्सपोर्ट) को बढ़ावा देने के लिए ट्रंप कमजोर डॉलर चाहते हैं।
ग्रोथ की रफ्तार में कमी
भारत की सबसे बड़ी चिंता इकोनॉमिक ग्रोथ की सुस्त रफ्तार है। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में जीडीपी 5.4 फीसदी रही। अब सवाल आता है कि यह नरमी केवल एक तिमाही के लिए था या फिर स्लोडाउन स्ट्रक्चरल है। अगर स्लोडाउन स्ट्रक्चरल है तो इसका असर शेयर बाजार पर नेगेटिव पड़ेगा। उम्मीद है कि फिस्कल और मौद्रिक प्रोत्साहन (मॉनेटरी स्टिमुलस) के कारण तीसरी और चौथी तिमाही में भारत की इकोनॉमी ग्रोथ में तेजी आएगी।
भारत की ग्रोथ स्टोरी होगी शानदार
लॉन्ग टर्म में देखें तो भारत की जीडीपी ग्रोथ काफी बेहतर नजर आ रही हैं। डॉ. वी के विजयकुमार, मुख्य निवेश रणनीतिकार (चीफ इन्वेस्टमेंट स्ट्रैटेजिस्ट), जियोजित फाइनेंशियल सर्विसेज के अनुसार भारत की स्थिर राजनीतिक प्रणाली, डेमोग्राफिक डिविडेंड, समाज के उद्यमशील होने, डिजिटल क्षेत्र में लीडरशिप और तेजी से बढ़ते स्टार्ट-अप इकोसिस्टम के दम पर आने वाले कई वर्षों तक भारत में तेज आर्थिक वृद्धि बनी रहने की संभावना है। अगर ऐसा होता है तो भारतीय इकोनॉमी और मार्केट लचीला बना रहेगा।