आज की व्यस्त जीवनशैली के चलते काफी लोग अनिद्रा से जूझ रहे हैं। ज्यादातर लोग डाक्टर से इसके बारे में बात नहीं करते। वहीं फिजिशियन भी नींद के बारे में अक्सर नहीं पूछते हैं। हालांकि, अनिद्रा कोई छोटी समस्या नहीं है, यह आपके सोच से अधिक गंभीर हो सकती है। एक्सपर्ट इसके कुछ चेतावनी संकेतों को लेकर आगाह करते हैं।
नींद के डाक्टर से क्यों मिलना चाहिए
कभी- कभार नींद की समस्या या नींद पूरी नहीं होना, सामान्य बात है, खासकर जब किसी परीक्षा या प्रोजेक्ट वर्क के नजदीक हों। हालांकि, डाक्टर तीन ऐसे बड़े कारण बताते हैं, जब नींद की समस्या होने पर डाक्टर से मिलना चाहिए।
सोने में कठिनाई
जब आप बिस्तर पर होते हैं, तो आप महसूस कर सकते हैं कि मन दौड़ रहा है या आराम नहीं मिल रहा है। ये इन्सोम्निया (अनिद्रा) या रेस्टलेस लेग सिंड्रोम के लक्षण हैं, जो पैरों के हिलाने की अनियंत्रित इच्छा से पहचाना जाता है। वहीं तनाव और एनीमिया इन लक्षणों को गंभीर बनाते हैं। अनिद्रा के पीछे कोई एक कारण नहीं होता। अगर इस तरह के लक्षण लगातार तीन महीने से अधिक समय तक रहते हैं, तो उपचार की नितांत आवश्यकता है। हालांकि, अगर लक्षण खराब हो रहे हैं या आपकी दिनचर्या प्रभावित होने लगी है, तो पहले भी डाक्टर से मिल सकते हैं।
नियमित रूप से शराब, बेनाड्रिल, कैनाबिस या मेलाटोनिन (बिना चिकित्सक के परामर्श के) का सहारा लेना भी अनिद्रा के पीछे एक बड़ा कारण हो सकता है। इनसे आपको जल्दी नींद आ सकती है, पर नींद की गुणवत्ता इससे प्रभावित होती है और इन सबसे स्लीप डिसआर्डर का जोखिम बढ़ता है।
दिन के समय नींद के झोकें
दोपहर के भोजन के बाद अंधेरे कमरे में या आरामदेह सोफे पर हल्की नींद महसूस करना सामान्य बात है, लेकिन काम करते हुए या ड्राइविंग करते झपकी लेना सामान्य नहीं है। स्लीप एप्निया में मरीज सोते समय सांस लेने में कठिनाई महसूस करते हैं। रात में खर्राटे लेने, हांफने या सांस टूटने जैसी परेशानियां याद नहीं रहतीं, पर पूरे दिन सिरदर्द या थकान महसूस करते रहते हैं । बहुत ही कम मामलों में नार्कोलेप्सी का लक्षण दिखता है, जिसे ‘स्लीप अटैक’ कहा जाता है । दिन के समय में कुछ सेकंड या मिनट के लिए नींद में चले जाते हैं और रात में सोते समय तकलीफ होती है।
डाक्टर से मिलने से पहले
नींद से जुड़ी अधिकांश समस्याओं का प्राथमिक उपचार या स्लीप स्पेशिलिस्ट द्वारा निदान किया जा सकता है। डाक्टर से मिलने के दौरान परेशानी को बताना जरूरी है, जैसे अचानक झोंके आना, लगातार नींद में रहना या दिन में थकान महसूस करना | डाक्टर से मिलने से पहले दो हफ्ते की स्लीप डायरी बनाएं, जिसमें सोने-जागने के समय, दवाओं, व्यायाम, एल्कोहाल या कैफीन का विवरण हो । हालांकि, स्लीप ट्रैकिंग को लेकर बहुत चिंतित नहीं होना चाहिए, इससे परेशानी बढ़ सकती है।
सोने में व्यवधान
नींद आठ घंटे का कोमा नहीं होता, बार-बार नींद टूटना संभव है, खासकर एक उम्र के बाद यह अक्सर देखने में आता है। नींद टूटने के समय यह अंतराल पांच से दस मिनट या इससे अधिक रहता है, तो यह नींद विकार या अन्य किसी बीमारी का संकेत हो सकता है। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 65 से 80 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में मुख्य रूप से ब्लैडर, तनाव और दर्द जैसी समस्याएं नींद में कठिनाई पैदा करती हैं। इनके निदान से नींद स्वाभाविक रूप से सही हो जाती है। कुछ मरीजों को पैरासोम्निया या असामान्य बर्ताव का अनुभव होता है, जैसे कि सोते समय वे टहलने, भोजन करने या चिल्लाने या झगड़ने जैसे अनुभव महसूस करते हैं। यह नींद में बार-बार व्यवधान का कारण बन सकता है। अंततः मोटापा, उच्च रक्तचाप, किडनी बीमारी या पार्किंसन जैसी समस्याएं अनिद्रा का कारण बनती हैं। इसलिए डाक्टर से सलाह आवश्यक है।