विवाह पंचमी आज, इस विधि से करें पूजा

मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को विवाह पंचमी का पावन पर्व मनाया जाता है। यह दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और माता सीता को समर्पित है। वैदिक पंचांग के अनुसार, इस साल विवाह पंचमी का पर्व 25 नवंबर यानी आज मनाया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ और व्रत करने से से जीवन में शुभता आती है, तो आइए इससे जुड़ी प्रमुख बातों को जानते हैं, जो इस प्रकार हैं –

राम-सीता विवाह अनुष्ठान शुभ मुहूर्त – शाम 04 बजकर 49 मिनट से शाम 06 बजकर 33 मिनट तक।
भोग – पंजीरी, पंचामृत, खीर, पीली मिठाई और पीले फल आदि।

सरल पूजा विधि
सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और साफ वस्त्र धारण करें।
व्रत या पूजा का संकल्प लें।
पूजा स्थल को साफ कर एक चौकी पर लाल कपड़े बिछाएं।
इस पर श्री राम और माता सीता की प्रतिमा स्थापित करें।
भगवान राम को पीले वस्त्र, चंदन और फूल अर्पित करें।
माता सीता को लाल वस्त्र, सिंदूर और सोलह शृंगार का सामान चढ़ाएं।
राम-सीता जी को फूलों की माला पहनाकर उनका गठबंधन करें।
विधि अनुसार, राम-सीता का विवाह करवाएं।
घी का दीपक जलाएं।
श्री रामचरितमानस से राम-सीता विवाह प्रसंग का पाठ करें।
इस दिन सुंदरकांड या रामरक्षा स्तोत्र का पाठ भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
अंत में भाव के साथ आरती करें और पूजा में हुई सभी गलती के लिए माफी मांगे।

पूजन मंत्र
श्रीं रामाय नमः
जय सियावर रामचन्द्र की जय, सीताराम चरण रति मोहि अनुदिन हो।।

महत्व
यह पर्व राम और सीता के आदर्श जीवन का प्रतीक है, जो धर्म, प्यार और त्याग की याद दिलाता है। मान्यता है कि इस दिन पूरे विधि-विधान से पूजा करने पर विवाह में आ रही अड़चनें दूर होती हैं। ऐसे में इस दिन जो साधक शादी से जुड़ी मुश्किलों से परेशान हैं, उन्हें खासतौर से विधिवत पूजा-पाठ करना चाहिए, जिससे वैवाहिक जीवन में प्रेम और खुशहाली आ सके।
।।मां सीता आरती।।
आरती श्री जनक दुलारी की ।

सीता जी रघुवर प्यारी की ॥

जगत जननी जग की विस्तारिणी,

नित्य सत्य साकेत विहारिणी,

परम दयामयी दिनोधारिणी,

सीता मैया भक्तन हितकारी की ॥

आरती श्री जनक दुलारी की ।

सीता जी रघुवर प्यारी की ॥

सती श्रोमणि पति हित कारिणी,

पति सेवा वित्त वन वन चारिणी,

पति हित पति वियोग स्वीकारिणी,

त्याग धर्म मूर्ति धरी की ॥

आरती श्री जनक दुलारी की ।

सीता जी रघुवर प्यारी की ॥

विमल कीर्ति सब लोकन छाई,

नाम लेत पवन मति आई,

सुमीरात काटत कष्ट दुख दाई,

शरणागत जन भय हरी की ॥

आरती श्री जनक दुलारी की ।

सीता जी रघुवर प्यारी की ॥

।।भगवान राम की आरती।।
श्री राम चंद्र कृपालु भजमन हरण भव भय दारुणम्।

नवकंज लोचन कंज मुखकर, कंज पद कन्जारुणम्।।

कंदर्प अगणित अमित छवी नव नील नीरज सुन्दरम्।

पट्पीत मानहु तडित रूचि शुचि नौमी जनक सुतावरम्।।

भजु दीन बंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकंदनम्।

रघुनंद आनंद कंद कौशल चंद दशरथ नन्दनम्।।

सिर मुकुट कुण्डल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।

आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खर-धूषणं।।

इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनम्।

मम ह्रदय कुंज निवास कुरु कामादी खल दल गंजनम्।।

मनु जाहिं राचेऊ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरों।

करुना निधान सुजान सिलू सनेहू जानत रावरो।।

एही भांती गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषी अली।

तुलसी भवानी पूजि पूनी पूनी मुदित मन मंदिर चली।।

दोहा- जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।

मंजुल मंगल मूल वाम अंग फरकन लगे।।

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