30 अप्रैल 17…..आज की डायरी में सिर्फ मेरे मन के भाव….
न धरती की परिक्रमा रुकती है, न सूर्य और चंद्र का अपना कर्म…उत्तरदायित्व का निर्वाह करने वाले क्या कभी थक कर बैठते हैं ?
थके हुए प्राणियों को नींद की थपकियाँ देने के लिए, सूरज, चंद्रमा को उत्तरदायित्व दे, खुद सोते हुओं को जगाने चला जाता है….. पर कोई ऐसा भी होता है, जो सूरज के साथ चलता है और चंद्रमा के साथ जागता है….
अरे!क्या इत्तेफ़ाक़ है,….. लिखते -लिखते मुझे याद आया कुछ ऐसे ही भाव कभी श्रीगुरुजी ने भी लिखे थे,…. आप सब के लिए, वह कविता भी भेज रही हूं…
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