किन्नरों की दुनिया एक अलग तरह की दुनिया है जिनके बारे में आम लोगों को जानकारी कम ही होती है। इसके अलावा किन्नारों पर न ही ज्यादा शोध किया गया है। भारत में बीस लाख से ज्यादा किन्नहर है और निरंतर इनकी संख्या घट रही है, मगर फिर भी हिंजड़े को संतान मिल ही जाती है।
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किन्नरों के बारे में कई प्रकार की रस्मे आज भी हमारे समाज में मौजूद है, जैसे कि हिंजड़ों की शव यात्राएं रात्रि को निकाली जाती है। शव यात्रा को उठाने से पूर्व जूतों-चप्पलों से पीटा जाता है। ये भी बताया जाता है कि दिवार तोड़कर तथा शव घसीट कर निकला जाता है।
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किन्निर के मरने उपरांत पूरा हिंजड़ा समुदाय एक सप्ताह तक भूखा रहता है। एक वर्ग इन्हे भ्रांतियों मानता है। इस संबंध में किन्नधर का दूसरा वर्ग भी इन रस्मों को इंकार तो नहीं करते, मगर इससे नाममात्र ही बताते है।
भारत के किन्नरों के दर्दनाक जीवन की अकाक्षाओं, संघर्ष और सदस्यों की अनदेखी करना ज्यादती होगी। किन्नतरों के संबंध में बताया जाता है कि कुछ किन्नसर जन्मजात होते है, जबकि कुछ ऐसे है कि पहले पुरूष थे, परंतु बध्याकरण की प्रकिया से किन्नसर बने है।
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