प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इजरायल दौरा मंगलवार से शुरू हो रहा है, इजरायल भारत के लिए काफी अहमियत वाला देश है. पहली बार कोई भारतीय पीएम इजरायल जा रहा है, इसलिए दोनों देशों में इस दौरे के लिए काफी उत्साह है. इजरायल का इतिहास भी भारत से ही मिलता-जुलता है|
पढ़ें आखिर क्या है इसका इतिहास…
दुनिया के सबसे ताकतवर देशों में से एक इजराइल. विश्वभर में यहूदी धर्म को मानने वाला एकमात्र देश इजराइल. इस देश का इतिहास भारत से काफी मिलता-जुलता है. भारत की तरह आजादी के बाद फिलिस्तीन भी तीन भागों में बंटा. जिसमें एक हिस्सा यहूदियों को इजराइल के रुप में मिला और बाकी दो हिस्सा अरबों को मिला. आज हम आपको फिलिस्तीन से अलग होकर बने इस नए देश इजरायल के जन्म की कहानी बताने वाले हैं.
शुरुआत फिलिस्तीन से करते हैं. फिलिस्तीन उस्मान साम्राज्य का हिस्सा था. 1878 में उस्मान साम्राज्य में 87% मुस्लिम, 10% इसाई और 3% यहूदी लोग थे. 1900 ई. में पहली बार इजरायल की स्थापना की मांग उठी जिसे सीयनीज्म आंदोलन का नाम दिया गया. दूसरे विश्व युद्ध के बाद उस्मान साम्राज्य का पतन हो गया और ब्रिटेन फिलिस्तीन पर राज करने लगा. अंग्रेजों ने बेलफोर्स घोषणा कर के यहूदियों के लिए अलग देश की मांग का समर्थन किया. इसके पीछे उनकी “फूट डालो और शासन करो” की नीति थी.
इसके बाद अंग्रेजों ने यहूदियों के अप्रवासन की सहमती दे दी. इससे बड़ी संख्या में यहूदी फिलिस्तीन का रुख करने लगे. ये लोग फिलिस्तीन आकर जमीन को कब्जा कर खेती करने लगे. यहूदियों की बढ़ती संख्या और पहले से रह रहे अरब लोगों में इसके कारण हिंसा होने लगी. इसे देखते हुए 1930 में अंग्रेजों ने अप्रवासन को सीमित करने का फैसला लिया. लेकिन इससे मामला और बिगड़ गया.
अप्रवासन सीमित करने के विरोध में यहूदी लड़ाकों का गठन होने लगा. वे लोग अरब के लोगों और ब्रिटिश राज को खत्म करने की कोशिश करने लगे. एक तरफ फिलिस्तीन में 1978 तक यहूदियों की संख्या महज 3% था. जो कि बढ़कर 1938 में 30% तक जा पहुंचा था.
बढ़ती हिंसा को रोक पाने में नाकाम हो रही ब्रिटिश राज ने यूएन से इस मसले का हल निकालने को कहा. इसके बाद नवंबर 1947 में यूएन ने फिलिस्तीन को तीन हिस्सों में बांटने का फैसला लिया. पहला हिस्सा यहूदियों को, दूसरा अरब को तीसरा येरुशलम.14 मई 1948 में अंग्रेजी राज खत्म हो गया और इजरायल ने खुद को एक आजाद देश घोषित कर दिया था.