पशु बिक्री अधिसूचना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फैसले को तगड़ा झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। मद्रास हाइकोर्ट की मदुरै बेंच ने भी इस मामले में स्टे लगा रखा है वह अगली सुनवाई तक जारी रहेगा। केंद्र सरकार भी नियमों में बदलाव के लिए राजी हो गई है।

बता दें कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने पशुओं को क्रूरता से बचाने के लिए 26 मई को नियमों में संशोधन किया था, जिसमें पशु बाजारों में कत्ल के लिए जानवरों की खरीद-फरोख्त पर रोक सुनिश्चित की गई।
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने अधिसूचना में बदलाव के लिए राजी हुई और साथ ही तीन महीने के भीतर इसमें जरूरी बदलाव करेगी। यह बदलाव पशु क्रूरता अधिनियम 1960 के अंतर्गत किया गया।
वहीं विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार के इस फैसले का सबसे ज्यादा असर मुस्लिम व्यापारियों पर पड़ेगा।
नए नियम के मुताबिक, अब देश में गाय, बैल, भैंस, बछड़े और ऊंट की स्लॉटर हाउस के लिए खरीद-फरोख्त पर पूरी तरह से रोक लगेगी।
नियमों के मुताबिक अब कोई भी मवेशी को तब तक बाजार में नहीं ला सकता जब तक कि वह यह लिखित घोषणापत्र नहीं पेश करता।
पशु बाजार को विनियमित करना और पशुओं को क्रूरता से बचाने के मकसद से सरकार द्वारा इस अधिसूचना को लाया गया है।
कोर्ट ने केंद्र सरकार को यह अंडरटेकिंग देने को मजबूर कर दिया कि वह पिछले दिनों जारी अधिसूचना का क्रियान्वयन नहीं करेगी।
न्यायमूर्ति केहर ने याचिकाकर्ता से कहा कि सरकार द्वारा अगले तीन महीने बाद जारी होने वाली नयी अधिसूचना को देखें और अगर नये नियमों से कोई परेशानी हो तो वह दोबारा याचिका दायर कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने पशु बाजार में वध के लिए मवेशियों को खरीदने और बचने पर रोक लगाने वाली अधिसूचना को चुनौती देने वाली याचिका पर केंद्र सरकार को को नोटिस जारी किया था।
हैदराबाद निवासी मोहम्मद फहीम कुरैशी ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करके कहा था कि केंद्र की अधिसूचना ‘भेदभाव पूर्ण और असंवैधानिक’ है, क्योंकि यह मवेशी व्यापारियों के अधिकारों का हनन करता है।
याचिकाकर्ता ने पशु क्रूरता रोकथाम (जब्त पशुओं की देखभाल तथा इलाज) कानून, 2017 को भी चुनौती दी है।
पेशे से वकील याचिकाकर्ता ने दलील दी है कि पशु क्रूरता रोकथाम (मवेशी बाजार विनियमन) कानून, 2017 तथा पशु क्रूरता रोकथाम (जब्त पशुओं की देखभाल तथा इलाज) कानून, 2017 मनमाना, अवैध तथा असंवैधानिक है।
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