एडिशनल जिला एवं सेशन जज लखविंदर कौर दुग्गल की अदालत ने ऑर्बिट बस कांड में नामजद चारों आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। थाना बाघापुराना में सवा 2 साल पहले ऑर्बिट बस के ड्राइवर, कंडक्टर और दो हाकरों के खिलाफ कथित छेड़छाड़ के बाद चलती बस से किशोरी को कथित तौर पर फेंक कर मारने का आरोप लगा था। इस कांड की देश-दुनिया में चर्चा होने के बाद बादल परिवार को काफी बदनामी का सामना करना पड़ा था। AC कमरों में बनती है नीति, किसानों के हालात के बारे में तो जाने लें: हाईकोर्ट
थाना बाघापुराना के अधीन गांव गिल के पास 29 अप्रैल 2015 को बादल परिवार की मालकी वाली बस कंपनी ऑर्बिट में छेड़छाड़ के बाद चलती बस से किशोरी अर्शदीप कौर को कथित तौर पर फेंक कर मारने के आरोप में बस चालक रणजीत सिंह निवासी बठिंडा, कंडक्टर सुखविंदर सिंह उर्फ पंमा, हाकर गुरदीप सिंह उर्फ जिम्मी और अमर राज उर्फ दाना के खिलाफ थाना बाघापुराना में केस दर्ज किया गया था। इसके बाद उनको गिरफ्तार कर लिया गया था। इस घटना में किशोरी की मां छिंदर कौर भी गंभीर घायल हो गई थीं।
ऑर्बिट बस कांड के चारों आरोपी बरी
एडिशनल जिला एवं सेशन जज की अदालत में बस कांड की सुनवाई के दौरान किशोरी के पिता सुखदेव सिंह और मां छिंदर कौर पुलिस के पास दिए बयानों से मुकर गए थे। अदालत में सुखदेव सिंह ने बताया कि उसे घटना बारे में कोई पुख्ता जानकारी नहीं थी। इस चश्मदीद दंपति की गवाही के बाद ही कानूनी माहिरों ने आरोपियों को बड़ी राहत मिलने की बात कह दी थी। घटना की जांच के लिए सरकार की ओर से स्थापित जस्टिस वीके बाली आयोग के आगे भी ये दंपति पेश होकर पक्ष रखने से टालमटोल करता रहा था।
इस कांड के बाद जहां बादल परिवार को काफी बदनामी का सामना करना पड़ा था, वहीं मोगा राजनीतिक अखाड़ा बन गया था। बादल सरकार ने इस घटना की वास्तविकता व अन्य तथ्य जानने के लिए जस्टिस वीके बाली आयोग को नियुक्त किया गया था।
पीड़ित परिवार को भत्तों के अलावा ऑर्बिट कंपनी को जिला रेडक्रॉस के जरिये पीड़ित परिवार को मुआवजे के तौर पर करीब 20 लाख रुपये चेक जरिये अदा करने पड़े थे। सरकार ने इस कांड को ठंडा करने के लिए पीड़ित परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी के अलावा सरकारी स्कूल, लंढेके का नाम मृतक किशोरी अर्शदीप के नाम रखने के अलावा गांव में उचित यादगार बनाने का एलान किया था।