इलायची हर भारतीय घर की रसोई का अहम हिस्सा है। आम तौर पर मसालों की तरह इस्तेमाल में आने वाली इलायची, मुखवास के तौर पर भी भरपूर उपयोग में लायी जाती है।न्यूज पेपर पर खाना खाने से हो सकता है कैंसर: जानिए कैसे…
इलायची का वानस्पतिक नाम एलाट्टारिया कार्डोमोमम है। वैसे तो इलायची को व्यंजनों में सुगंधदायक मसाले के तौर उपयोग में लाया जाता है लेकिन आदिवासी इसको भी औषधीय गुणों से भरपूर मानते हैं और अनेक नुस्खों में इसे इस्तमाल भी करते हैं। चलिए जानते हैं इससे जुड़े आदिवासी हर्बल नुस्खों के बारे में।
पातालकोट के आदिवासी सफेद मूसली की जड़ों के चूर्ण के साथ इलायची मिलाकर दूध में उबालते हैं और पेशाब में जलन की शिकायत होने पर रोगियों को दिन में दो बार पीने की सलाह देते हैं। इन आदिवासियों के अनुसार इलायची शांत प्रकृति की होती है और ठंडक देती है।
पान के पत्ते में इलायची के दाने मिलाकर खाने से सर चकराना, घबराहट और जी मिचलाना जैसी शिकायतों में आराम मिलता है। उल्टी होने के बाद दो चार दाने इलायची के चबाने से मुँह का स्वाद बदलता है और राहत भी मिल जाती है।
पातालकोट में आदिवासी हर्रा के बीजों का चूर्ण (1 चम्मच), एक या दो इलायची का चूर्ण और थोड़ी सी अजवायन मिलाकर अपचन की समस्या होने पर रोगियों को देते है। यह नुस्खा पाचन प्रक्रिया का सुचारू करता है।
शहद में एक ग्राम इलायची का चूर्ण, स्वादानुसार काला नमक, घी और एक लौंग को कुचलकर मिला लिया जाए और थोड़े- थोड़े अंतराल से चाटा जाए तो बरसात और ठंड में होने वाली खांसी में तेजी से राहत मिलती है।
आदिवासियों के अनुसार शारीरिक कमजोरी दूर करने के लिए काली मूसली (5-10 ग्राम), बादाम (एक या दो), चिरौंजी के दाने (2 ग्राम) और तीन इलायची को मिलाकर कुचल लिया जाए और रोज रात सोने से पहले खाया जाए तो समस्या का समाधान आहिस्ता-आहिस्ता होने लगता है।
जिन्हें ज्यादा पेशाब होने की शिकायत होती है उन्हें विदारीकंद, लौंग और इलायची की समान मात्रा लेकर दिन में तीन बार चबाना चाहिए, माना जाता है कि पेशाब होने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।
पेशाब से जुड़ी अनेक समस्याओं में राहत के लिए डांग-गुजरात के आदिवासी मीठी नीम की जड़ों का रस तैयार करते हैं। रस की 20 ग्राम मात्रा में दो चुटकी इलायची दानों का चूर्ण मिलाकर रोगियों को देते हैं, तेजी से आराम मिल जाता है।